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[१ ] ६००० वर्ष पूर्व जब मानव विहार का पहला अध्याय खुलवा है व मानव पूर्णतया स्वतंत्र, विकसित, सभ्य व सुसंस्कृत था। वाकला और विज्ञान में पारंगत था। वह अंगली या सर्वर नहीं था। मह सम्यक् अन्तर्कियानी से प्रेरित था। वह अहिंमा और सत्य में विश्वास रखता था और इस बाधार पर इसके आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व शासनिक संस्थानों का निर्माण हुवा था। व्यक्ति स्वतन्त्र और प्रबुद्ध था। समाज में तनाव न था। हिंसा पर आधारित राजनेतिक सचा न थी। शासक मात्मानुशासित, निलोमी. अपरि मही और सच्चे जनसेवक थे। मानव समाज सम्बक माला-क्रियावाद पानी भामण विचारधारा में विश्वास रखता था। इस क्षेत्रमें भारत, पश्चिमी एशिया मिश्र, यूनान व दक्षिणी अमरीका सम्मिलित थे। इस श्रमण समाज से प्रायः ४००० वर्ष पूर्व सामूहिक शोषण पर आधारित मौतिकवादी कबीलीय आर्यसमाज का संघर्ष प्रारम्भ हुआ जो १००० साल तक चल कर निक बायससा की विजय में परिणत हुआ। इसके बाद मानवता ३००० साल से कबीलाबाद, सामन्तवाद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, और साम्यवाद में से गुजरी है। आज मोतिकवाद थक कर समाप्ति के कगार पर खड़ा है। आज अहिंसा और सत्य की शक्तियों के लिए अनूठा अवसर है। विद्वानों को नव्य श्रमणवाद शोध में लगाना चाहिये जिससे वे मानव स्वातन्त्र्य, मानव सुख व मानव शान्ति का सत्य पथ मानव जाति को दिखा सकें।
आचार्यश्री तुलसी ने कहा-मैं भी जैन की शोध वृत्ति से प्रारम्भ से परिचित हूँ। विद्वानों ने भी इस शोध कार्य का समर्थन किया है, यह हर्ष की बात है। इस समाज में भी जेन प्रथम व्यक्ति है जो इस प्रकार के तुलनात्मक व बालो. चनात्मक शोध कार्य में लगे हैं। इस शोध के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। यदि समाज इस शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाता है तो यह उसकी जड़ता है। थापने आगे कहा कि जिस समाज में विद्वान को बल व सहयोग नहीं मिलता वह समाज हानि उठाता है। इस शोध को समी का बल मिलना चाहिये।
दिनांक २७-१०-६४ : प्रातः तृतीय दिवस का प्रथम आयोजन गंगाशहर (बीकानेर) में भी ईश्वरचन्दजी चौपड़ा की कोठड़ी में आचार्यश्री के सानिध्ध में उनके मंगल सूत्रोचारण के साथ प्रारम्भ किया गया ।
सर्वप्रथम श्री नथमलजी टाटिया ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा
मुझे बाज जैन दर्शन के बारे में बोर अपनी संस्कृति के सम्बन्ध में कुछ बोलना है। जेनीका मुख्य मार्ग है-मोक्ष। सम्यम् दर्शन, सम्यग शान और सम्यम्