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[ ८ श्री के सी जैन ने 'नव्य ममष विचार धारा' विषय पर बोलते हुए कहा७०-७५ वर्ष पूर्व जब भारत में शोध कार्य प्रारम्भ किया गया था तब प्रान्तार्य में लिखा था कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है। अंग्रेजों का कहना है कि विदेशी विद्वान् ऐसा मानते भी थे। कुछ आगे रिसर्च का कार्य बढ़ा। अंग्रेजी विद्वान् जिनियम ने लिखा है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की शाखामात्र ही नहीं है किन्तु दोनों साष्टांग है। जैन समाज में सबसे बड़ी क्रान्ति डा० जैकोबी के समय में हुई थी; बह जर्मन विद्वान था। उस समय प्राच्य विद्वानों में वह सबसे बड़ा विद्वान् माना जाता था। उसने जैन साहित्य और बौद्ध साहित्य द्वारा यह सिद्ध कर दिखाया है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से भी प्राचीन है। उस समय यह बात बड़ी आश्चयजनक लगी, पर उन्होंने प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध कर दिखाया। हालांकि अभी भी इस पर शोध कार्य चल रहा है।
वैदिक मान्यता के अनुसार कुछ ऐसे विषय मिलते हैं जिससे यह मालूम होता है कि जेनो की संस्कृति पार्श्वनाथ तक ही नही है, उमसे पूर्व की भी हो सकती है। शायद बीच की संस्कृति पौराणिक है। तीर्थकर पौराणिक है और यह भी नहीं माना जा सकता कि ऋषभदेव पौराणिक है।
आगे उन्होने कहा-विद्वानों द्वारा इसकी अन्तर्राष्ट्रीय खोज की गई है। धीरे-धीरे शोधकार्यों में वृद्धि हुई और विश्वविद्यालयों में इसका अध्ययन होने लगा। आयो की जितनी प्रशंसा की जाती है वह महत्व की नहीं है। प्रश्न उठता है, भारत में इतनी ऊँची आदर्श की बातें जो मिलती है वे कहाँ से मिलती हैं ? अध्यात्म संस्कृति के द्वारा ही तो मिलती है। इस सम्बन्ध में काफी खोज हुई है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, मेरठ, गुजरात आदि स्थलों में आज से ४॥ हजार वर्ष पूर्व उच्च सभ्यता का निवास था, क्या उस समय सारे कार्य व्यवस्थित थे? आधुनिक कदम बढ़े। आज से ५ हजार वर्ष पूर्व ये सारी लिपियाँ लप्त हो गई थी, यहाँ तक कि नागरिक सभ्यता भी लप्त हो गई थी, मकान आदि भी कुछ लुप्त हो गये थे; इन सब का आवरण ईसा की वो शताब्दी से होता है। अस्तु, इस प्रकार बहुत-सी खोज बाकी है। सभी विद्वानों को चाहिये कि वे इस प्रकार के खुदाई के स्थलों की खोज कर नवीन तथ्यों को प्रकट करें।
श्री रामचन्द्र जैन एडवोकेट ने अपनी 'नव्य श्रमण विचारधारा' पर प्रकाश डालते हुए कहा-इतिहास की पुनाख्या करने से क्रान्तिकारी तथ्य प्रकाश में आए हैं। मानव जाति का ६००० वर्ष पूर्व का इतिहास उपलब्ध नहीं है।