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ध्वनि-विज्ञान
L प्र० वि० अ० साध्वीश्रो संघमित्राजी ]
" शब्धतेऽनेनेति शब्दम्” शब्द ध्वन्यात्मक तत्त्व है, जिससे वातावरण को ध्वनित व शब्दित किया जाता है। शब्द भौतिक है या अभौतिक ? इसके उत्पन्न और प्रसरण की प्रक्रिया क्या है ? इस विषय में वैज्ञानिक जगत से सुन्दर तथ्य सामने आये हैं । ग्रामोफोन, बायलिन, प्यानो, टेपरेकार्डर, लाउडस्पीकर, ट्रांजिस्टर, इयरफोन, माइक्रोफोन, टेलीफोन ये सब ध्वनि विज्ञान के परिचायक हैं । जैन साहित्य में भी शब्द पर अनेक वैज्ञानिक तथ्य छिपे पड़े हैं। वे प्रकाश में आने के लिए प्रतिभा का श्रम मांगते हैं ।
शब्द पुद्गलों का स्कन्ध के संघटन और स्कन्ध स्वयं अशब्द है । शब्द स्कन्ध प्रभव हैं ।
जैनागम और शब्द
ध्वनि रूप' परिणाम है । यह अनन्तप्रदेशी' पुद्गल विघटन से पैदा होता है । पञ्चास्तिकाय कहता है शब्द तो नाना स्कन्धों के संघर्ष से उत्पन्न है । अतः
विज्ञान ने भी यही कहा -- पदार्थ के प्रकम्पन से शब्द उत्पन्न होता है, लेकिन पदार्थ स्वयं अशब्द है । अणु “ एटम" से कभी शब्द पैदा नहीं होता । एटम तो प्रतिक्षण मोलिक्यूल्स (स्कंध ) में प्रकम्पित होते ही रहते हैं ।
शब्दोत्पत्ति की प्रक्रिया दो प्रकार की है - प्रायोगिक और वैखसिक I प्रायोगिक वैसिक ये दोनों जैन के पारिभाषिक शब्द हैं । प्रयत्न जन्य शब्दों को प्रायोगिक कहा जाता है। सहज निष्पन्न शब्द वैखसिक कहलाते हैं । शब्द ध्वन्यात्मक होते हैं; पर सभी शब्द भाषात्मक नहीं होते । dearer शब्द अभाषात्मक होते हैं। मेघ की गर्जन सहज पैदा होती है लेकिन उसमें कोई भाषा नहीं है; प्रायोगिक शब्द अभाषात्मक भी होते हैं और
१ - जैन सिद्धान्त दीपिका १ सू० १२ की टीका ।
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२- ठा० २.२१८१ ।
३ - पञ्चास्तिकाप - श्लो० ८५-८६ ।
४ - जैन सि० सू० १२ प्र० १ ।