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संचालक, अनुसन्धान संस्थान
वाराणमय
Fac
वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी - २
दूरध्वनि - ४०१४ तार — “ तम्"
२१-६-१६७३
प्रिय महोदय,
आपका १२-६-७३ दिनांकित पत्र प्राप्त हुआ । उसके साथ आपके शोधनिबन्ध की सार पुस्तिका भी संलग्न थी। नई दिल्ली स्थित 'प्राच्य-विद्या शोध अकादमी' अपनी प्रकाशन योजना के अन्तर्गत केन्द्रीय शासन के शिक्षा मंत्रालय की आर्थिक सहायता से आपका 'जैनदर्शन आत्मद्रव्यविवेचनम्' नामक शोध-प्रबन्ध प्रकाशित कर स्तुत्य कार्य करने जा रही है
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यह हर्ष का विषय है कि आपने इस विश्वविद्यालय में जैन दर्शन का विधिवत अध्ययन कर प्रथम श्रेणी मे आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण की, उसके अनन्तर इस शोध-प्रबन्ध पर भी इस विश्वविद्यालय ने आपको उपाधि प्रदान की । विश्वविद्यालय को आप जैसे स्नातकों पर गौरव है । अकादमी द्वारा प्रवर्तित इस प्रकाशन योजना की सफलता के लिए मेरी हार्दिक कामना है ।
भवदीय :
भा० प्र० त्रिपाठी 'वागीश शास्त्री',