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प्रिय पटेरिया जी,
विधान परि
सभापति
परिषड
उत्तर
तर प्रदेश
कानपुर कंम्प १८-६-७३
सप्रेम नमस्कार !
आपके द्वारा प्रेषित पत्र संख्या प्रा० वि० शो० अ० / प्र० /१७-७२-७३ दिनांक १२ जून १६७३ प्राप्त हुआ । एतदर्थं धन्यवाद । यह जानकर हर्ष हुआ कि आपका शोध प्रबन्ध -- " जैनदर्शन आत्मद्रव्य विवेचनम्" शिक्षा मंत्रालय --- भारत सरकार के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हो रहा है । मेरी बधाइयाँ स्वीकार करें ।
जैन दर्शन भी भारतवर्ष के अन्य दर्शनों की भाँति, अध्यात्म-तत्त्व के प्रति आस्था उत्पन्न करने तथा उस महत्तत्व के मूर्त रूप को प्रस्तुत करने की एक प्रक्रिया है । यदि इस प्रबन्ध में, भारतवर्ष की ज्ञान-गरिमा के अनुकूल, इस तत्त्व विवेचन में परम्परा तथा वैज्ञानिक शोध-सामर्थ्य का समन्वय हुआ हो तो निश्चय ही, एक प्रशंसन प्रयास है । इस दृष्टि से ग्रथ सचमुच उपयोगी प्रमाणित होगा । शुभकामनायें ग्रहण करें । आशा है आप सानंद होगे ।
भवदीय वीरेन्द्र स्वरूप