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जैन-मक्तिके भेद शुद्धात्मा' कहलाते हैं। महत्त्वपूर्ण प्रश्न ___ जब सिद्ध अर्हन्तोंके लिए पूज्य हैं, फिर 'णमो अरिहंताणं' मन्त्रमें पहले अर्हन्तोंको नमस्कार क्यों किया गया है ? ___ इसका उत्तर देते हुए भगवत पुष्पदन्त भूतबलिने षट्खंडागममें लिखा है, "यदि अर्हन्त न होते तो हमको आप्तागममें कहे हुए पदार्थोंका अवगम न हो पाता। अर्हन्तोंके प्रसादके कारण ही हम प्रामाणिक श्रुतको प्राप्त कर सके हैं, अतः आदिमें उनको नमस्कार किया गया है। आवश्यक सूत्रपर लिखी गयी आवश्यक नियुक्तिमें भी, ऐसा ही कथन है। तात्पर्य यह है कि समवसरणमें विराज कर अर्हन्त, आयुके क्षय होने तक विश्वको उपदेश देते हैं । वे उपदेश ही श्रुत साहित्यके रूपमें प्रतिष्ठित हो जाते हैं, और उनसे समाजको सदैव लाभ होता है । इसी दृष्टि से अर्हन्तोंको पहले नमस्कार किया गया है।
१. केवल-वीरिउ सो मुणहि जो जि परावर भाउ ॥
यः परापरः परेभ्योऽहत्परिमेष्ठिभ्यः पर उत्कृष्टो मुक्तिगतः शुद्धात्मा भावः पदार्थः स एव सर्वप्रकारेणोपादेय इति तात्पर्यार्थः । योगीन्दु, परमात्मप्रकाश : श्री आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये सम्पादित, बम्बई, १९३७ ई०, ११२४१, ब्रह्मदेवकृत संस्कृतवृत्तियुक्त, पृ० ३१-३२ । "विगताशेषलेपेषु सिद्धेषु सत्स्वर्हता सलेपानामादौ किमिति नमस्कारः क्रियत इति चेष दोषः, गुणाधिकसिद्धेषु श्रद्धाधिक्यनिबन्धनत्वात् । असत्यहत्याप्तागमपदार्थावगमो न मवेदस्मदादीनां, संजातश्चैतत् प्रसादादित्युपकारापेक्षया वादावहनमस्कारः क्रियते।" मगवत् पुष्पदन्त भूतबलि, षटखंडागम : वीरसेनाचार्यको टीकासहित, डॉ. हीरालाल जैन सम्पादित, अमरावती, वि० सं० १९९६, पृ० ५३.५४ । अरहंतुवएसेणं सिद्धा नजति तेण अरहाई। न वि कोइ य परिसाए पणमित्ता पणमई रनो॥ मावश्यकनियुक्तिसहित मावश्यकसूत्र : भागमोदयसमितिग्रन्थोद्धार, सूरत,
१०२२वाँ पच, पृ० ५५३ । ४. अस्थ मासइ अरिहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं ।
सासणस्स हियट्ठाए, तभो सुचं पवसह ॥ देखिए वही : ९२वीं गाया।