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जैन-मक्तिकाम्यकी पृष्ठभूमि
भावस्तोत्र' और अध्यात्मशतककी रचना की थी। आचार्य हेमचन्द्र [ जन्म सं० ११४५, मृत्यु सं० १२२९) ने वीतरागस्तोत्र, महादेवस्तोत्र और महावीरस्तोत्रका निर्माण किया था। चौदहवीं शताब्दीके प्रारम्भमें श्री जिनप्रभसूरिने चतुर्विशतिजिनस्तोत्रम् और चतुर्विशतिजिनस्तुतयः की रचना की थी।
ऐसा कथन भ्रम-मूलक है कि अपभ्रंशमें स्तुति-स्तोत्रोंकी रचना नहीं हुई । स्वयंभू [ ८वीं शताब्दी ईसवी ] के 'पउमचरिउ' में और पुष्पदन्त [ १०वीं शताब्दी ईसवी ] के 'महापुराण' में स्थान-स्थानपर विविध स्तुति-स्तोत्र तो हैं ही, किन्तु पथक्से स्वतन्त्र रूपमें भी उनकी रचना हुई है। कवि धनपाल [ ११वीं शताब्दी विक्रम ] के 'सत्यपुरोय महावीर उत्साह की बात पं० नाथूरामजी प्रेमीने कही है । इसमें भगवान् महावीरकी स्तुति है । जिनदत्तसूरि [ जन्म ११३२, मृत्यु १२११ विक्रम संवत् ] ने चर्चरी और नवकारफलकुलक अपभ्रंशमें ही रचे थे । श्री देवसूरि [ जन्म ११४३, मृत्यु १२११ वि० सं०]" ने मुनिचन्द्र सूरिस्तुतिका निर्माण किया था। १. बृहजिनवाणीसंग्रह : पं० पन्नालाल बाकलीवाल सम्पादित, जैन ग्रन्थ
कार्यालय मदनगंज, सम्राट संस्करण, सितम्बर १९५६, पृ० २५८ पर
प्रकाशित । २. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, संख्या १३, पृ० १३१ पर प्रकाशित । ३. डॉ. हरवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य : भारतीय साहित्य मन्दिर, दिल्ली,
पृ. ३२१-२२। ४. जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार : फतेहचन्द बेलानी सम्पादित, जैन संस्कृति
संशोधन मण्डल, काशी, १९५० ई०, पृ० १९।। ५. दोनों ही, जैनस्तोत्रसमुच्चय : मुनि चतुरविजय सम्पादित, बम्बई,
१९२८ ईसवी, द्वितीय भाग, पृ० १४९-५७ पर प्रकाशित । ६. पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास : नवीन संस्करण, हिन्दी
प्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई, अक्टूबर १९५६, पृ० ४१० । ७. जैन साहित्य संशोधक : वर्ष ३, अंक ३ में प्रकाशित । ८. जैनस्तोत्रसन्दोह : प्रथम भाग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद,
१९३२ ईसवी, प्रस्तावना, पृ० ३३-३४ । ९. Descriptive Catalogue of Manuscripts at the Jain Bhand
aras at Patan, Lalchandra Bhagvandas Gandhi Edited,
Oriental Institute, Baroda, Vol. I, 1937 A.D, p. 267, 44. १०. जैनस्तोत्रसंदोह : प्रथम माग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद,
प्रस्तावना, पृ० ३६ ।