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जैन-भक्तिके अंग
'उवसम्गहरस्तोत्त' भद्रबाहुको प्रसिद्ध कृति है। इसमें केवल पांच पद्य हैं किन्तु इतने सशक्त कि उनपर कई टोकाएं रची गयीं। ये भद्रबाहु, श्रुतकेवली भद्रबाहुसे भिन्न थे, ऐसा इनके द्वारा रची गयी अनेक नियुक्तियोंसे सिद्ध है। इनका समय छठी शताब्दी ( वि० सं० ) का मध्यकाल निश्चित ही है। उन्होंने 'पञ्चसिद्धान्तिका के अन्तमें स्वयं ही अपना समय शक संवत् ४२७ (वि० सं० ५६२) लिखा है। महाकवि धनपालकी 'ऋषभपंचाशिका' में ५० पद्य हैं, जिनमें से प्रारम्भिक २० में भगवान् ऋषभदेवको जीवन घटनाएं हैं, और अवशिष्ट ३० में भगवान्की प्रशंसा है। इन्हींकी लिखी हुई 'वीरथई' भी है जो देवचन्द लाल भाई पुस्तकोद्धार ग्रन्थमालाकी ओरसे सन् १९३३ में बम्बईसे प्रकाशित हुई थी। धनपाल विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दीके पूर्वार्धमें हुए हैं। ग्यारहवीं शताब्दीमें ही अभयदेवसूरिने महावीरस्तोत्रकी रचना को, जिसमें २२ पद्य हैं। बारहवीं शताब्दीके पूर्वार्धमें हुए जिनबल्लभसूरिने 'पंचकल्याणकस्तोत्र' १. पार्श्वदेवगण ( १२वीं शताब्दी-अन्त ) की लघुवृत्ति के साथ यह स्तोत्त,
जैनस्तोत्रसन्दोह : द्वितीय भाग, मुनि चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, पृष्ठ १-१३ तकपर प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त जिनप्रमसूरि, सिद्धचन्द्रगणि और हर्षकीर्तिसूरि (१४वीं शताब्दी वि० सं० ) की व्याख्याओं सहित देवचन्द लाल भाई जैन
पुस्तकोद्धार ग्रन्थमालासे सन् १९३३ में प्रकाशित हुआ है। २. देखिए दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति (प्रथम पद्य ), उत्तराध्ययन नियुक्ति
( २३३वाँ पद्य) और आवश्यक भादि ग्रन्थोंपर लिखी गयीं अनेक निर्यक्तियाँ । इनमें श्रुतकेवली भद्रबाहुको 'प्राचीन' विशेषणसे युक्त कर स्मरण किया गया है और श्रुतकेवलीके बाद हुए आचार्यों का भी नामोल्लेख है। ३. सप्ताश्विवेदसंख्यं शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ । अर्धास्तमिते मानौ यवनपुरे सौम्यदिवसाये ॥
पञ्चसिद्धान्तिका : ८वाँ पद्य । ४. ऋषमपंचाशिका स्तोत्त: काव्यमाला, माग ७, पं० दुर्गाप्रसाद और वासुदेव लक्ष्मण सम्पादित, बम्बई,१९२६,पृ० १२४.३१ पर प्रकाशित हो चुका है।
और यह स्तोत्र, जैन-साहित्य संशोधक, वर्ष ३, अंक ३, में भी प्रकाशित हुआ है। ५. जैन-साहित्य और इतिहास : पं० नाथूराम प्रेमी, नवीन संस्करण, हिन्दी
ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई, अक्टूबर १९५६, पृ० ४०९ । ६. जैनस्तोत्रसंदोह : प्रथम माग, मुनि चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद,
पृ० १९७-९९ ।