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भाराध्य देवियाँ शीषगाके एक सच्चिकादेवोके भक्त, राजसेवक गुहिलंग, क्रमविषयी, पारावर्षके द्वारा मन्दिरके गोष्ठिकोंके समक्ष यह व्यवस्था लिखायो थी कि प्रतिदिन भोजकोंके लिए मन्दिरका द्वार खुला रहना चाहिए, और उन्हें प्रतिदिन मन्दिरके कोष्ठागारसे मुगमा० १०, घृतकर्ष १, मिलना चाहिए।'
लोद्रवा नामके स्थानपर एक प्राचीन पार्श्वनाथका मन्दिर है, जिसमें गणेश प्रतिमाकी चौकीपर, वि० सं० १३३७ का एक लेख खुदा हुआ है, जिसके अनुसार अजमेर दुर्गमें सच्चिकादेवी और गणेशजोके साथ-साथ ५२ जिनबिम्बोंकी प्रतिष्ठा की गयी थी।
जूना ( मारवाड़) में भी सच्चिया माताका एक मन्दिर है । उसमें वि० सं० १२३७, फाल्गुन सुदी १०, मङ्गलवारके शिलालेखके अनुसार "उकेशगच्छकी एक पवित्र स्त्री थी, जिसका नाम .सर्वदेवी था। संसारमें उसकी ख्याति थी। उसमें अनेक पवित्र गुण थे। उसकी शिष्या चरनमात्याका हृदय भी विशुद्ध था
और उसने अपनी तथा दूसरोंकी भलाई के लिए सच्चिकाको मूर्तिका निर्माण करवाया। ककुदसूरिके द्वारा उसकी प्रतिष्ठा हुई थी।
जोधपुर संग्रहालयमें सच्चिकाकी एक खण्डित प्रतिमा है। मूत्तिका ऊपरी भाग नहीं है। दोनों टाँगें और दोनों पैर मौजूद हैं, तथा टांगोंपर धोती पहनी
१. "संवत् १२३६ कार्तिक सुदि १ बुधवारे अधेह श्रीकेल्हड़देव महाराज
राज्ये तत्पुत्र श्री कुंमरसिंह सिंहविक्रमे श्री माडम्यपुराधिपती-दभिकान्वीय कीत्तिपाल राज्यवाहके तद्भुती श्री उपकेशीय श्री सनिकादेवि देवग्रहे श्री राजसेवक गुहिलंगी क्रयविषयी धारावर्षेण श्री क सन्धिकादेवि गोष्टिकान् मणिश्वा तत्समक्ष तस्य व्यवस्था लिखापिता। यथा। श्री सच्चिकादेविद्वारं मोजकैः प्रहरमेकं यावदुद्भाव्य द्वारस्थितम् स्थातग्यम् । मोजक पुरुष प्रमाणं द्वादशवर्षीयोत्परः । तथा गोष्टिकैः श्री सच्चिकादेवि कोष्ठागारात् मुगमा० १० । घृतकर्ष १ भोजकेभ्यो दिन प्रति दातम्यः।"
वही : लेख-संख्या ८०४, पृ० १९८ । २. अजयमेरुदुर्गे गत्वा द्विपंचासत् जिनबिम्बानि सच्चिकादेवि गणपति
सहितानि कारितानि प्रतिष्ठितानि । पूर्णचन्द नाहड, जैनशिलालेख संग्रह : भाग १, लेख-संख्या २५६५,
पृ० १७२। ... ३. पुरुषोत्तमप्रसाद गौड़, प्राचीन शिलालेख संग्रह : जोधपुर, १९२४, पृ० २।