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भूमिका
सामनेकी एक पहाड़ी को अपनी मन्त्र विद्यासे स्वर्णकी बनाकर भी दिखा दिया । आचार्य समन्तभद्रने स्वयम्भू-स्तोत्र के उच्चारणसे चन्द्रप्रभकी मूर्ति प्रकट कर दी थी । आचार्य मानतुंग ४८ तालोंमें बन्द थे । भक्तामरके एक-एक श्लोकपर ताले खुलते गये और वे बाहर आ गये। भट्टारक ज्ञानभूषण मन्त्रोंके विशेष जानकार और साधक थे। उन्होंने उनका प्रयोग मूर्तियों और मन्दिरोंके बनवाने और उन्हें पवित्र करनेमें किया । जैन साधुओंके पास विद्याएं थीं, मन्त्र थे, देवियाँ सिद्ध थीं, किन्तु उन्होंने उन्हें राग- सम्बन्धी पदार्थोंमें कभी नहीं लगाया । जैन मन्त्र सांसारिक वैभवोंके देने में सामर्थ्यवान होते हुए भी वीतरागी बने रहे । देवियाँ जिनेद्रकी भक्त थीं और वे अपने साधकोंको केवल वीतरागी भावोंके पोषण में ही सहायता करती थीं। कुछ चैत्यवासी साधुओंमें, एक ऐसी लहर आयी थी, जो राग- सम्बन्धी सिद्धिकी ओर मुड़ रही थी, किन्तु अनेक आचार्योंके जोरदार विरोधने उसे समाप्त ही कर दिया । लहर आयी और चली गयी । जैन मन्त्रोंकी वोट रागता भारतीय संस्कृतिका शानदार पहलू है ।
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इन देवियोंके अतिरिक्त जैन लोग देवोंके भी उपासक थे । इस ग्रन्थ में यक्ष, धरणेन्द्र, इन्द्र, लौकान्तिकदेव, सूर्य, नायगामेष, ब्रह्मदेव, नागदेव और भूतोंपर लिखा गया है । यक्ष मन्त्रोंसे सिद्ध होते हैं, किन्तु वे केवल उन्हींकी सहायता करते हैं, जो जिनेन्द्रके भक्त हैं। जिन शासन के प्रचार में उनका योगदान प्रसिद्ध है | धरणेन्द्र देवी पद्मावतीके पति हैं। उन्होंने तीर्थङ्कर पार्श्वनाथकी, भूतानन्दके भोषण उपसर्गसे रक्षा की थी । पद्मावती से सम्बन्धित मन्त्र धरणेन्द्रपर भी लागू होते हैं । नागोंको जैन परम्परामें देव माना गया है। उनकी संसिद्धिसे मनोकामनाएं पूरी होती हैं । प्राचीनतम भारतमें एक जाति नागोंकी इतनी भक्त थी कि उसका अपना नाम नागजातिके नामसे विख्यात हो गया । इसमें भारतके प्रसिद्ध राजे, विद्वान् और साधु हुए हैं । जैनोंमें भूतोंकी भी आराधना प्रचलित है, किन्तु केवल उनके द्वारा सम्भावित बाधाओंका निराकरण करनेके लिए ही । जैन लोग उन्हें विघ्नकारक मानते हैं । नायगामेष गर्भधारणके देवता हैं । उनकी विचित्र रूपरेखा आकर्षणका विषय है । कहा जाता है कि देवी त्रिशलाके गर्भ परिवर्तन में उन्हींका हाथ था ।
भारतीय संस्कृति के अध्ययन में जैन पुरातत्वका गौरवपूर्ण स्थान है । यदि उसे निकाल दिया जाये, तो ऐसा समझना चाहिए कि एक विशेष अंशको ही निकाल दिया गया । भगवान् ऋषभदेवके पुत्र सम्राट्र भरतने, पोदनपुर में अपने: भाई बाहुबलि, जिन्होंने बारह वर्ष तक तप किया था, की खड्गासन मूर्ति बनवायी