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जैन-मक्तिकाम्बकी मनि का बिदलन करनेमें पूर्ण समर्थ है। भक्त तो देवीके इस शक्तिशाली रूपपर ही मोहित हुया है और उसका हृदय बार-बार देवीको प्रचण्डा कहने के लिए चाह उठता है। प्रत्येक प्रात:में उसने माके इसी रूपके गीत गाये हैं, और सचमुच उसे वैभव मिला है, सम्पत्ति प्राप्त हुई है, कल्याण उपलब्ध हुआ है । माके स्तबनने उसके विशृंखल, टूटे-फूटे जीवन में आनन्दको जन्म दिया है। . .
तेरहवीं शताब्दीमें एक ओर तो कण्हप-कालसे चली आनेवाली स्वांगकी नाटय-परम्परा थी, जिसके नाटक डोम और डोमनियों द्वारा अभिनीत होते थे, दूसरी परम्परा रासकी थी, जिसका अभिनय बहुरूपिये अपवा जिणसेवक किया करते थे । बहुरूपियों द्वारा नाटकोंका अभिनय मन्दिरोंके बाहर होता था, किन्तु जैनमन्दिरोंमें अभिनय कर्ता जैनधर्मके सेवक हुआ करते थे। जम्बूस्वामी चरिउमें अम्बादेवी-रासका उल्लेख हुआ है।
____३. देवी चक्रेश्वरी वज्र-हस्ता
यतिवृषभ ( छठी शताब्दी ) की तिलोयपण्णत्तिमें चक्रेश्वरी देवीको भगवान् . ऋषभदेवकी शासनदेवी कहा गया है। देवीके दस हाथ और चार मुंह होते हैं
१. देखिए, चतुर्विशतिकाः श्लोक ९६ । २. ॐ प्रचण्ड प्रसीद प्रसीद क्षणं ।
हे सदानन्दरूपे विधेहि क्षणम् ।।
जिनेश्वरसूरि, अम्बिकादेवी-स्तुतिः श्लोक ४, बही : पृ. ९६ । ३. देवि प्रकाशयति सन्ततमेष कामं
वामेतरस्तव करश्चरणानतानाम् । कुर्वन् पुरः प्रगुणितां सहकारलुम्बिमम्बे विलम्ब विकलस्य फलस्य लामम् ।
महामात्य वस्तुपाल, अम्बिका-स्तवनम् : श्लोक ५, वही : पु० ९५। ४. डॉ० दशरथ मोझा, हिन्दी नाटक-उद्भव और विकास : ममिका, डॉ.
द्विवेदी लिखित, १० ख। ५. "चंचरिय बंधिविरहउ सरसु, गाहज्जह संतिट तार जसु,
नच्चिज्जइ जिणपय सेवाह, किमु रासड अंबादेविवहिं।"
देखिए वही : पृ० ५३८ । ६. तिलोयपणत्ति: माग, ४१९३७, पृ. २६७ ।
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