________________
जैन मक्तिकाव्यकी पृष्ठभूमि
nonrust ( after ) नामक देवी हैं, वह स्वर्ण-जैसे वर्णवाली, सिंहवाहिनी और चार हाथवाली है। उसके दक्षिण उभय हस्तमें बीजपूरक और पाश हैं। बायें दो हाथोंमें पुत्र और अंकुश हैं ।" कहीं-कहीं दाहिने हाथमें आम्र-गुच्छका भी उल्लेख है। श्री जिनप्रभसूरिने 'अम्बिकादेवी- कल्प' की रचना की है। उसके अनुसार "भगवतीके चार हाथ होते हैं जिनमें से दाहिने दो हाथोंमें क्रमशः 'अम्बलुम्बि" और 'पाश' रहता है, बायीं ओरके दो हाथोंमें पुत्र तथा अंकुश होते हैं, उत्तप्त स्वर्णके समान उसके शरीरका रंग है और वह रखतकगिरिके शिखरपर निवास करती है पण्डित आशाधरके दिगम्बर प्रतिष्ठा पाठमें देवीको आराधनाका विधान करते हुए कहा गया है, "जो देवी दस धनुष प्रमाण ऊंचे जिनेन्द्रकी भक्त है, गहरे हरित आभावाली है, आम्रवृक्षकी छायामें रहती है, उस सिंहपर सवारी करती है, जो पूर्वभव में पति था, बायें हाथमें आम्र फलोंका गुच्छा, गोदमें बैठे हुए प्रियंकर पुत्रको बहलाने के लिए लिये हुए हैं, और उनके सीधे हाथकी अंगुलियोंको शुभंकर पकड़े है, ऐसी देवी आम्रा या अम्बिकाका सभी यजन करते हैं । सोलहवीं शतके प्रसिद्ध पण्डित नेमिचन्दजीने अम्बिकाका निरूपण करते हुए लिखा है, "जिसकी बायीं गोदमें प्रियंकर सुत और बायें हाथमें आम्रकी मंजरी है, जो सीधे हाथमें शुभंकरकी अंगुली पकड़े हुए है, जो उस प्रशस्त सिंहपर आसीन है,
१५२
روت
१. तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां कूष्माण्डों देवीं कनकवर्णा सिंहवाहनां चतुर्भुजां मातुलिंगपाशयुक्त दक्षिणकरां पुत्राङ्कुशान्वितवामकरां चेति ।
रूपमण्डन : पृष्ठ ४२ ।
२. साय मगवई चउन्भुआ दाहिणहत्थेसु अंबलंबि पासं व धारेछ । वामहरथे पुण पुत्तं अंकुरूं च धारेह । उत्तत्तकणयसवणं च वष्णमुब्बहर सरीरे । सिरिनेमिनाहस्स सासणदेवय ति निवसह रेवइगिरिसिहरे । मठड कुंडलमुसाहलहाररयणकंकणने उराइसब्वंगीणाभरणरमणिज्जा पूरेइ सम्मदिट्ठीण मणोरहे, निवारेह विवसंतायं । जिनप्रभसूरि, विविधतीर्थकल्प: पृ० १०७ ।
३. सम्येकच्युपगप्रियङ्करसुतुक् प्रीत्यै करं बिभ्रतों दिव्यास्त्रस्तवकं शुभङ्करकरश्लिष्टाभ्यहस्ताङ्गुलिम् । सिंहे म चरे स्थितां हरितमामात्र मच्छाय वदारुं दशकार्मुकोच्छ्रयजिनं देवी महाम्यां यजे || पं० आशाधर, प्रतिष्ठासार : १७६वाँ इलोक ।