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भाराध्य देवियाँ
( सूरत ) के पृष्ठ १५ से १८ तकके मध्य दिये हुए हैं, उनमें कमलके बाहर चार दिशाओंमें जो मन्त्र लिखे जाते हैं, वे इस प्रकार हैं: ...
पूर्व-ॐ हीं क्षां पद्मावतीदेम्यै नमः । दक्षिण-ॐ ह्रीं क्षों पद्मावतीदेव्यै नमः। पश्चिम-ॐ ह्रीं क्ष पदमावतीदेव्यै नमः।
उत्तर-ॐ ह्रीं ॐ षमावतीदेव्यै नमः। देवी पद्मावतीकी भक्तिसे सम्बन्धित कतिपय उद्धरण
श्रीमद्गीर्वाणचक्रस्फुटमुकुटतटी दिव्यमाणिक्यमालाज्योतिज्ाला कराला स्फुरितमुकुरिका पृष्ठपादारविन्दे !। म्याघ्रोरोल्कासहस्रज्वलदनलशिखालोलपाशाङ्कशाये !
ॐ क्रीं ह्रीं मस्त्ररूपे ! क्षपितकलिमले ! रक्ष मां देवि ! पो। ॥१॥.. बड़े-बड़े श्रीमानोंके मणिजटित किरीट-जिनमें से भयंकर ज्वाला फूटती हैदेवी पद्मावतीके पादारविन्दोंमें सदैव झुकते हैं, और इस भौति देवीके चरणोंके लिए दर्पणका काम करते हैं। देवी सहस्रों ज्वालाओंसे प्रज्वलित अङ्कश और पाशको धारण करती है। वह देवी कलियुगके मैलको नष्ट करनेवाली तथा ॐ, क्री, ह्रीं जैसे मन्त्रको साक्षात् करनेवाली है। भक्त उस देवींसे रक्षा करनेको याचना करता है।
दिव्यं स्तोत्रं पवित्रं पटुतरपरतां भक्तिपूर्व त्रिसन्ध्यं लक्ष्मी सौभाग्यरूपं दलितकलिमलं मङ्गलं मङ्गलानाम् । पूज्यां कल्याणमालां जनयति सततं पार्श्वनाथप्रसादात्
देवी पद्मावती नः प्रहसितवदना या स्तुता दानवेन्द्रः ॥२६॥ देवीके दिव्य और पवित्र स्तोत्रको तीनों संध्याओंमें भक्तिपूर्वक पढ़नेवाले व्यक्तिके सौभाग्यरूप लक्ष्मी उदित होती है, कलियुगके दोष दूर हो जाते हैं
और सर्वोत्कृष्ट मङ्गल प्राप्त होता है । दानवेन्द्रोंके द्वारा स्तुता और प्रसन्नमुख रहनेवाली देवी पद्मावती, भगवान् पार्श्वनाथके प्रसादसे कल्याणोंको प्रदान करती है।
१. देखिए वही : पृष्ट.१७, १८ । .. २. पद्मावती स्तोत्र : भैरव-पद्यावती-कल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट ५, पृ० २६ । ३. पचावती-स्तोत्र : भैरव-पद्यावती-कल्प : सूरत, पृ० १२६ ।।