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जैन-मक्केि भेद
- सम्यग्दर्शन, जो मोक्ष प्राप्त करनेका मूलाधार है, यदि निसर्गसे उत्पन्न होता है, तो अधिगमसे भी' । अधिगमका अर्थ है-अर्थावबोध, जिसकी प्राप्तिमें श्रुतका बहुत बड़ा योगदान है। सराग सम्यग्दर्शनके भेदोंमें एक आस्तिक्य भी है, जिसका अर्थ देव, शास्त्र, व्रत और तत्वोंमें दृढ़ विश्वास करना है । अर्थात शास्त्रमें दृढ़ विश्वास करना सम्यग्दर्शन ही है। ___ अङ्ग, उपाङ्ग और प्रकीर्णकके भेदसे श्र तसागर अपार है। कोई पण्डितमानी भी उसको पार करनेमें समर्थ नहीं है। यह द्वादशाङ्गरूप श्रुत रत्नोंसे भरे समुद्रके समान है, अतः वह अत्यधिक सुन्दर है । श्रुत देवीकी उपासना ___ श्रुतदेवीकी महिमाका वर्णन करते हुए भगवज्जिनसेनाचार्य ( ९वीं शताब्दी विक्रम ) ने लिखा है, "भगवान् ऋषभदेवकी तीन पत्नियां थीं-सरस्वती,कोत्ति
और लक्ष्मी। लक्ष्मीमें उनका प्रेम मन्द हो गया था। उन्हें तो सरस्वती और कल्पान्त काल तक रहनेवाली कीर्ति ही अधिक प्रिय थीं।" १. तनिसर्गादधिगमाद्वा।
उमास्वाति, तस्वार्थसूत्रः ६० कैलाशचन्द्र सम्पादित, चौरासी, १॥३,४० ४। २. 'अधिगमोऽर्थावबोधः ।'
पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि : पं० फूलचन्द्र सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी,
वि. सं. २०१२, १३ का भाष्य, पृ० १२ । ३. आप्ते श्रुते व्रते तरवे चित्तमस्तित्वसंयुतम् ।
भास्तिक्यमास्तिकैरुक्तं मुक्तियुक्तिधरे नरे ॥
सोमदेव, यशस्तिलक : काव्यमाला ७०, बम्बई, १९०१, पृ. ३२३. ४. अंगो-वंग-पइनयभेया सुभसागरो खलु अपारो।
को तस्स मुणइ मझ, पुरिसो पंडिश्चमाणी वि? ॥ सम्वप्पवायमूलं, दुवालसंगं जो समक्खायं । रयणायरतुलं खलु, ता सव्वं सुंदरं तम्मि । श्री शान्तिसूरि, चेयवंदणमहामासं : जैन आत्मानन्द समा, भावनगर,
वि. सं. १९७७, गाथा १९,२१, पृ० ४ । ५. सरस्वती प्रियास्यासीत् कीर्तिश्चाकल्पवर्सिनी। 'लक्ष्मी सडिल्लतालोलां मन्दप्रेम्णेव सोऽवहत् ॥ भगवजिनसेनाचार्य, महापुराण : माग १, पं० पनालाल जैन सम्पादित, हिन्दी-अदित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, वि. सं. २००७, १५४८, पृ० ३२९ ।