________________
खण्ड]
* अहिंसाका स्वरूप *
कुछ धर्मों में अहिंसाकी मर्यादा मनुष्य जाति तक ही, अथवा बहुत आगे गई तो पशु और पक्षियोंके जगत्में जाकर समाप्त होगई है, पर जैन-अहिंसाकी मर्यादामें तमाम चराचर जीवोंका समावेश होनेपर भी वह अपरिमित ही रहती है । दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिये कि जैनकी अहिंसा विश्वकी तरह अमर्यादित और आकाशकी तरह अनन्त है।
लकिन जैनधमक इस महान तत्त्वके यथार्थ रहस्यको समझने का प्रयास बहुत ही कम लोगोंने किया है। जैनियोंकी इस अहिंसाके विषयमं जनताके अन्तर्गत बहुत अज्ञान और भ्रम फैला हुआ है। ___बहुतसे बड़े बड़े अजैन विद्वान इसको अव्यवहाय्य, अनाचरणीय, आत्मघातक एवं कायरताकी जननी समझकर इसको राष्ट्र-नाशक बतलाते हैं। उन लोगोंके दिल और दिमाग़में यह बात जारों से ठसी हुई है कि जैनियोंकी इस अहिंसाने देशको कायर और निर्वीय बना दिया है । इसका प्रधान कारण यह है कि आधुनिक जैन-समाजमें अहिंसाका जो अर्थ किया जाता है, वह वास्तव में ही ऐसा है। जैनधमकी असली अहिंसाकं तत्त्व ने आधुनिक जैन-समाजमें अवश्य कायरताका रूप धारण कर लिया है। इसी परिणामको देखकर यदि अजैन विद्वान् लोग उसको कायरता-प्रधान धर्म मानने लग जाय तो आश्चर्य नहीं। परन्तु जैन-अहिंसाका वास्तविक रूप वह नहीं है, जो