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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * .... .... nonIAAAY कि एक लकड़हारा जिस डालपर बैठा हुआ हो, उसीको काट रहा हो, इस प्रकार आज हमारी समाज संसारकी निगाहमें अपनेको हास्यास्पद बना रही है। ___ मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारे समस्त जैन बान्धव वर्तमान भारतकी सामाजिक व राजनैतिक अवस्थाको ध्यानमें रखते हुए और अपने अटल और महान् अनेकान्तवादके सिद्धान्तको स्मरण करते हुए प्रेम-पूर्वक मिलकर रहेंगे और राग-द्वेष व वैमनस्य रूपी वृक्षको जड़-मूलसे नष्ट कर देंगे। उसी अवस्था में हमारी विभाजित जैनसमाज संगठित होकर भगवान् महावीर के दिव्य और महान् सिद्धान्तोंको संसारको बता सकेगी यानी जैनधर्मका प्रचार व अपनी आत्माका सुधार कर सकेगी और यही मनुष्य-जन्म पानेका सार है। -
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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