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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[प्रथम
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जैसे-सिद्धसेन दिवाकर, विद्यानन्द, भट्टाकलक, माघनन्दि, गुणनन्दि, जिनसेन स्वामी, गुणभद्र भदन्त, स्वामी समन्तभद्राचार्य आदि।
जैनधर्मपर और उसके साहित्यपर प्रकृतिने दुष्कालों द्वारा बड़ा धक्का पहुँचाया। विधर्मी द्वारा यानी शंकराचार्यजी तथा उनके शिष्यों द्वारा इस धर्मपर बड़े बड़े आघात किए गये । तुर्को-पठानों के हमलों और लूट-मारने जैनधर्मको बड़ा आघात पहुँचाया। इन सब बातोंका उदार जैनधर्मने बड़ी सहनशीलता और बड़ी वीरतासे मुकाबिला किया। पर जैनधर्मावलम्बियोंकी
आपसकी फूटने इसे बड़ा जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। क्योंकि यह कहावत प्रसिद्ध है कि खेतमें उपजे सब कोई खाय, घरमें उपजे घर बह जाय ।' उसीका यह परिणाम आज दृष्टिगोचर होता है कि महावीर भगवान् और उनके निर्वाणके सैकड़ों वर्ष बाद तक भारतवर्ष में जैनियों की करोड़ों संख्या थी और बड़े बड़े राजा और रईस इस धर्मके मानने वाले थे। पर आपसकी फूट, जिसने जैनधर्मके साहित्य व ज्ञान और उसके समुदायको बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाया है, उसने अाज बीसवीं शताब्दी तक भी इस समाजका पीछा नहीं छोड़ा है। जब कि समस्त भारतवर्षके धर्मावलम्बी, जैसे-हिन्दू, सिक्ख, आर्यसमाजी, कृश्चियन, मुसलमान आदि भरसक मिलनेका प्रयत्न कर रहे हैं। वर्तमान समयमें भारतवर्षके तमाम विद्वानों और अगुआओं