SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ] * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * ३७ धर्मावलम्बी जैन-धर्मको एक कायरोंका धर्म समझा करते थे और उसके अनुयायियों को पोप अथवा भीरु कहा करते थे । पर हम जैनियोंको महात्मा गाँधीजीको कोटिशः धन्यवाद देना चाहिये कि उन्होंने अपनी समाजके मुखको उज्वल कर दिया और बता दिया कि अहिंसामय धर्म शूरवीरों अथवा बहादुरोंका है। आज उसने न सिर्फ भारतवर्ष में, बल्कि समस्त दुनियां में अहिंसाकी छाप डाल दी है और सिद्ध करके बता दिया कि अगर संसारका निस्तार अथवा उद्धार हो सकता है तो केवल एक अहिंसामय सिद्धान्त ही मार्ग है । हम जैनियोंको वत्तमान आन्दोलन से सबक सीखना चाहिये और आत्मविश्वास लाकर सत्यपर अरूढ़ रहना चाहिये । मेरा यह ख्याल है कि अब जनता अहिंसा के सिद्धान्तको अवश्य मान गई है, पर हम जैनियोंके कार्यों को देखकर उसके हृदय में अवश्य संदेह हो सकता है । मेरी अपने जैनी भाइयोंसे यही प्रार्थना है कि उन्हें महावीर भगवान् के जीवन से अहिंसाका सबक लेना चाहिये और अपने जीवनका उसीके अनुसार बनाना चाहिये । चौथा आरा एक सागरोपम में ४२००० वर्ष कम कालका होता है। इस चौथे आरेमें ११ चक्रवर्ती हुए । उनके नाम, पिताका नाम, माताका नाम, स्त्रीका नाम, आयुष्य, अवगाहना, और गति निम्न प्रकार हैं
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy