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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[प्रथम
की। तब पावकुमारने तैयारीका कारण पूछा। इसपर राजा ने सारा हाल कहा । तब कुमारने कहा कि मुझे आज्ञा दीजिये, मैं सब ठीक कर आऊँगा । राजाने आज्ञा दे दी । वह बड़ी सेना के साथ वहाँ गया और कलिङ्ग देशके राजाको दूत द्वारा संदेश भेजा कि यदि तुम यहाँसे पीछे लौट कर चले जाओ तो मैं तुम्हारा अपराध क्षमा कर दूंगा, वरना तुम्हारा बुरा हाल किया जायगा। शुरूमें तो कलिङ्ग-राजा हवाके घोड़ेपर सवार था, पर जब उसे पार्श्वनाथकुमारके बलके बारेमें ज्ञात हुआ तो वह फौरन उपस्थित हुआ और क्षमाकेलिये प्रार्थना की। वह स्वीकार कर ली गई । इसके बाद वह वहाँसे चला गया। यह देखकर राजा प्रसेनजितकी हर्षकी सीमा न रही। उन्हें एक साथ दो खुशियाँ हुईं । एक तो शत्रुका भय दूर हुआ और दूसरे पार्श्वनाथकुमार, जिनकी आवश्यकताथी, घर बैठे आ गये। राजाने पार्श्वनाथको बड़ा धन्यवाद दिया और प्रार्थना की कि मेरी कन्या प्रभावतीको ग्रहण करो। इसपर कुमारजीने उत्तर दिया कि मैं जिस कार्यकेलिये आया था, पूरा हो गया । अब मैं वापस चला जाऊँगा । इसपर राजा प्रसेनजितने प्रार्थना की कि मैं आपके पिताके चरणोंको प्रणाम करने चलना चाहता हूँ। इसको पावकुमारने स्वीकार कर लिया। राजा प्रसेनजित प्रभावतीको लेकर काशीं आया। राजा प्रसेनजितने राजा अश्वसेनको राज-रीति के अनुसार नमस्कार करके सारा हाल सुनाया। राजा अश्वसेनने कहा कि कुमार प्रारम्भसे ही