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खण्ड ]
* परमेष्ठी अधिकार #
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प्रवचनका अभ्यास कराते हैं, साधुजनोंको क्रिया धारण कराते हैं, जैसे सूर्य अस्त हो जानेपर घर में स्थित घट -.. पदार्थ नहीं दीखते हैं तथा प्रदीपके प्रकाशसे वे दीखने ल उसी प्रकार केवलज्ञानी सूर्यके समान श्रीतीर्थकर देवके मु रूप महल में जानेके पश्चात् तीनों लोकोंके पदार्थो करनेवाले दीपक के समान आचार्य ही होते हैं । अवश्य नमस्कार करना चाहिये । जो भव्य जीव ऐसे निरन्तर नमस्कार करते हैं, वे जीव धन्य माने ज उनका भवक्षय शीघ्र हो जाता है ।
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प्रश्न- आचार्योंका ध्यान किसके समान तथा किस रूप में करना चाहिये ?
उत्तर - आचार्यो का ध्यान स्वर्णके समान पी चाहिये । उक्त गुणोंके अलावा आचार्यजी साधुकं स० भी सम्पन्न होते हैं ।
'णमो उवज्झायाणं'
‘णमो उवज्झायाणं' इस चौथे पदसे उपाध्यायोंको नमस्कार किया गया है। इन उपाध्यायोंका क्या स्वरूप है और उपाध्याय किनको कहते हैं ?
जो ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार छेद, चार मूल सूत्र और बत्तीसवें आवश्यकजीके जानकार होते हैं, उनको उपाध्यायजी कहते हैं । अथवा - जिनके समीपमें रह कर अथवा आकर