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* परमेष्ठी अधिकार #
'एमो आइरियाणं'
'मो आइरियाणं' इस तीसरे पदसे आचार्योंको नमस्कार किया गया है। उनका स्वरूप क्या है अर्थात् श्राचार्य में क्या क्या गुण होते हैं ?
खण्ड ]
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उत्तर - जो मर्यादा पूर्वक अर्थात् विनय पूर्वक जिन शासनके अर्थका सेवन अर्थात् उपदेश करते हैं, उनको आचार्य हैं। अथवा - जो ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचारके पालन करनेमें अत्यन्त प्रवीण हैं तथा दूसरोंको उनके पालन करनेका उपदेश देते हैं, उनको आचार्य कहते हैं। अथवा --जो पाँच महाव्रत, पाँच आचार*, पाँच समिति, तीन गुप्ति, पाँच इन्द्रियवशित्व करें, नब बाढ़ ब्रह्मच कषायको त्यागें, इन छत्तीस गुण युक्त श्राचार्य महा और आठ सम्पदा अर्थात् सूत्र सम्पदा, शरीर सम्पदा, व मति संपदा, उपयोग संपदा, वाचना संपदा, संग्रह संपदा और तेजः संपदाके धनी होते हैं। इत्यादि अनेक गुण युक्त होते हैं। आचार्य महाराज बावन अनाचीके टालनेवाले, अठारह हजार शीलाङ्ग आदि अनेक गुण युक्त होते हैं ।
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संपदा,
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* (१) दर्शनाचार, (२) ज्ञानाचार, (३) चारित्राचार, ( ४ ) तप प्राचार और ( ५ ) वीर्याचार, ये प्राचार्य महाराजके 'पाँच आचार' कहलाते हैं। समिति, गुप्ति आदिका वर्णन पहले प्रकरणों में किया जा चुका है।