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खण्ड ]
* परमेष्ठी अधिकार #
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अनन्त गुण समाविष्ट होते हैं, वे घात करते हैं । वे आठ कर्म घातिया और अघातियाके भेदसे दो प्रकारकें हैं। 'अघातिया' शब्द में 'नम्' समास ईषदर्थमें हुआ है। अरिहन्त भगवान के चार घातिया ही कर्म नष्ट हुए हैं, जिसकी वजहसे उनके अनन्त चतुष्टय प्रादुर्भूत हो गये हैं। और चार अघातिया अभी मौजूद हैं, जिसकी वजहसे शरीर आदि भी अरिहन्त भगवान के मौजूद रहते हैं । लेकिन 'सिद्ध भगवान्' के चार घातिया और चार अघातिया अर्थात् आठों ही कर्म नष्ट हो गये हैं। जिसकी वजहसे उनके आठ गुण प्रगट हो जाते हैं। सिद्ध भगवान्के आठ गुण ये हैं:
( १ ) सम्यक्त्व, (२) दर्शन, (३) ज्ञान, ( ४ ) अगुरुलघुत्व, (५) श्रवगाहनत्व, (६) सूक्ष्मत्व, (७) अनन्तवीर्य और (८) अव्याबाधत्वं ।
उक्त गुणों के अन्तर्गत सिद्धों में अनेक गुण और होते हैं, उनमें से कुछ संक्षेपमें यहाँ कहे जाते हैं:
सिद्ध भगवान् अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तबल, अनन्तवीर्य अनन्तसुख और अनन्तक्षायिक सम्यक्त्वके धनी होते हैं, उनकी आत्माका विस्तार सदा एकसा रहता है, अमूर्त हैं, न हलके हैं न भारी हैं, पाँच प्रकारका ज्ञानावरणीय कर्म क्षय करके उन्हें अनन्त केवलज्ञान प्रकट हुआ, दो प्रकारका वेदनीय कर्म क्षय करके वाघा-पीड़ा रहित हुए, दो प्रकारका मोहनीय कर्म