________________
खण्ड]
* जैनधर्मकी प्राचीनता *
ram
चलने और अन्ध परम्परामें विश्वास रखनेसे आप ही आप घोर नरकम पड़ेगे ||१५|| भगवानका यह ऋषभावतार रजोगुण व्याप्त मनुष्योंको मोक्ष-मार्ग सिखलानेकेलिये हुआ।
अग्निपुराणके ६ वें अध्यायमें लिखा है"अग्निरुवाचवक्ष्य बद्धावतार न. पठतः श्रृगु तोऽर्थदम। पुरा देवासुर युद्ध, दैत्यैः देवा: पराजिता: ॥१॥ रक्ष रक्षोतं शरणं, बदन्ती जग्मरीश्वरम । मायामोहस्वरूपासी, शुद्धोदनसुतोऽभवत् ॥ २॥ मोहयामास दैत्यास्तान , त्यजतो वेदधर्मकम् । ते च बौद्धा बभवाह, तभ्यो न्ये वंदजिता:॥३॥
आर्हतः सोऽभवत पश्चात. अर्हतानकरात्परान् । एवं पासरिडनो जाताः, वंदधर्मविवर्जिताः ।। ४॥" - इसका अर्थ इस भाँति है। अग्निदेव बोले- अब मैं बुद्ध के अवतारको कहता हूँ। यह पढ़ने वा सुननेसे मनोकामना पूर्ण करनेवाला है। पूर्व किसी समयमें दवों और दैत्योंका बड़ा भारी युद्ध हुआ, उसमें देवता लोग दैत्योंसे हार गये। वे सब मिल कर अपनी रक्षाकेलिये विष्णु भगवानकी शरणको प्राम हुए। तब भगवानने मोह और मायाके स्वरूप शुद्धोदन-सुत बुद्धके अवतारको धारण किया और दैत्योंको मोह कर उन से वेद-धर्म का परित्याग करा दिया। उनके उपदेशसे वे दैत्य