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________________ खरड * नवतत्त्व अधिकार * ३६१ भी कायम रहते हैं । झान बिना दर्शन नहीं और दर्शन बिना ज्ञान नहीं, दोनोंका जोड़ा है। इनको स्वच्छ बना सम्पूर्णता प्राप्त करनेका साधन चरित्र और तप हैं। ये सादि-सान्त हैं अर्थात् मोक्ष प्राप्त हो शब तक इनकी आवश्यकता है। इन चारों प्रकारके गुणाराधनसे मोक्ष प्राप्त होता है। समस्त कर्मोके नष्ट हो जानेके पश्चात् मुक्त जीव लोकके अन्त भाग तक ऊपरको जाता है। जिस तरह मिट्टीसे लिपटी हुई तुंबी जब तक मिट्टीके कारण भारी रहती है, तब तक पानीमें डूबी रहती है, परन्तु ज्यों ही उसकी मिट्टी धुल जाती है, त्यों ही वह पानीके ऊपर आजाती है। इसी प्रकारसे कर्मके मारसे दबा हुआ आत्मा ज्यों ही उनसे छूट कर हलका होता है, त्यों ही वह ऊपरको गमन करता है। जीवका जब ऊर्ध्व-गमनका स्वभाव है तो फिर लोकके अन्तमें ही क्यों ठहर जाता है ? अलोकाकाशमें क्यों नहीं चला जाता है ? इसका उत्तर यह है अलोकाकाशमें धर्मास्तिकायके प्रभाव होनेसे आत्मा गमन नहीं कर सकती है अर्थात् धर्मादिक पाँच द्रव्योंका निवास लोकाकाशमें ही है, अलोकाकाशमें नहीं है। और जीव और पुद्गलको गमन करनेमें सहायक धर्म द्रव्य ही होता है, जिसका कि भागे प्रभाव है। इसलिये जीवके गमनका भी प्रभाव है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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