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________________ ३८६ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास. [तृतीय १-क्षधा, २-तृषा, ३-शीत, ४-उष्ण, ५--दंशमशक, ६-अचेल, ७-अरति, ८-स्त्री, --चर्या, १०-निषद्या, ११-शय्या, १२-अक्रोध, १३--वध १४-याचना, १५अलाम, १६-रोग, १७-तृण, १८-मल, १६-सत्कारपुरस्कार, २०-प्रज्ञा, २१-अज्ञान और २२-प्रदर्शन । दस यतिधर्म: १-क्षमा, २-मुक्ति, ३-आर्जव, ४-माईव, ५-लाघव, ६-सत्य, ७-संयम,८-तप, ६-त्याग और १०-ब्रह्मचर्य छ । बारह भावना: १-अनित्य, २--अशरण, ३--संसार, ४-एकत्व, ५अन्यत्व, ६-अशुचि, ७--श्रास्रव, ८-संवर, ६-निर्जरा, १०-लोक, ११-बोधि और १२--धर्मस्वाख्यातत्व । पाँच चारित्रः १-सामायिक, २-छेदोपस्थापनीय, ३-परिहारविशुद्धि, ४-सूक्ष्मसम्पराय और ५-यथाख्यात । निर्जरा जिस प्रकार समुद्र में पड़ी हुई किसी नौकाके छिद्र तो बन्द कर दिये, जिससे कि श्राता हुआ पानी रुक गया, लेकिन जो पानी उसमें पहले भर गया है, वह जब तक न निकाला जायगा, तब *"उत्तम-समामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्स्यागाधिन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।" -उमास्वाति ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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