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खण्ड
* सम्यक्त्व अधिकार *
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जिनको यह सम्यक्त्व प्राप्त होता है, वे वर्तमान भवमें ही मुक्तिको प्राप्त करते हैं।
उपशम श्रेणी-भावी औपशमिक सम्यक्त्वकी प्राप्ति चौथे, पाँचव, छठे या सातवें में से किसी गुणस्थानमें हो सकती है परन्तु आठवें गुणस्थानमें तो उसकी प्राप्ति अवश्य ही होती है।
औपशमिक सम्यक्त्वक समय आयुर्वन्ध, मरण, अनन्ता. नुबन्धी कपायका बन्ध तथा अनन्तानुबन्धी कपायका उदय, ये चार बातें नहीं होती। पर उससे च्युत होने के बाद हो सकती हैं।
सम्यक्त्व-सत्ताकी निश्चय, व्यवहार, सामान्य और विशेष, ऐसी चार विधिका वर्णन किया जाता है।
१-मिथ्यात्वके नष्ट होनसे मन, वचन व कायके अगोचर जो आत्माकी निर्विकार श्रद्धानकी ज्योति प्रकाशित होती है, उसे निश्चय सम्यक्त्व जानना चाहिय ।
२-जिसमें योग, मुद्रा, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदिकं विकल्प हैं, यह व्यवहार सम्यक्त्व है।
३-ज्ञानको अल्प शक्तिके कारण मात्र चेतना चिन्हके धारक आत्माको पहिचान कर निज और परके स्वरूपका जानना सामान्य सम्यक्त्व है।
४-हेय, ज्ञय, उपादेयके भेदाभेदका विस्तार रूपसे सममना विशेष सम्यक्त्व है।