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________________ * संयम * ३२६ जाता है। महाविदेह क्षेत्रमें तो यह संयम सब समयमें लिया जाता है । इस संयमके धारण करनेवालोंको महावत चार और कल्पस्थितास्थित संयम होता है। (२) छेदोपस्थापना-प्रथम संयम-पर्यायको छेद कर फिरसे उपस्थापन (व्रतारोपण ) करना-पहले जितने समय तक संयमका पालन किया हो. उनने लमयको व्यवहारमे न गिन कर और दुबारा संयम ग्रहण करनेके समयसे दीक्षा-काल गिनना व छोटे-बड़का व्यवहार करना छेदोपस्थापना मंयम' कहलाता है। इसके (क) मानिचार और (ख) निरतिचार. ये दो भेद हैं: (क) सातिचार बंदोपस्थापना संयम वह है, जो किसी कारणसे मूलगुणोंका--महात्रतोंका--भङ्ग हो जानेपर फिरसे ग्रहण किया जाता है। ___(ख ) निरतिचार दोपस्थापना उस सयमको कहते हैं, जिमको इत्वरसामायिक संयमवाले बड़ी दीक्षाके रूप में ग्रहण करते हैं। यह संयम, भरत-ऐरावत क्षेत्रमें प्रथम तथा चरम तीर्थकरके साधुओं को होता है और एक तीर्थ के साधु, दूसरे तीर्थमें जब दाखिल होते हैं। तब उन्हें पुनर्दीक्षाके रूपमें यही संयम दिया जाता है ! * जैसे श्रीपार्श्वनाथके केशी-गाङ्गेय आदि सान्तानिक साधु, भगवान् महावीरके तीर्थ में जब दाखिल हुये थे, तब उन्हें दिया गया था।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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