________________
२३८
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[ तृतीय
५- लोहू और चरबी जो हरामके खाने से शरीरमें बढ़ी हो उसे धुला डालनेसे और ६-शरीरने पापोंसे जितना सुख उठाया है, मालिककी सेवामें उसे उतना ही दुःख देनेसे |"
-महात्मा अबूबकर 1
$
"जिसने अपना बुरा स्वभाव नहीं छोड़ा, जिसने अपनी इन्द्रियों को नहीं रोका. जिसका मन अति चञ्चल है, वह केवल पढ़ने-लिखने से आत्मज्ञानको नहीं पा सकता ।" - कठोपनिषद् |
उ
"भोजन शरीर के पोषण के लिये और शरीर भगवन भजन के लिये रचा गया है, शरीर भोजन के लिये नहीं रचा गया ।" - साकी
जीवन के लिये भोजन है भोजन के लिये जीवन नहीं है ।"
- एक अज्ञात कवि |
-
जिसके भोजनका श्राशय केवल जीवके वचनका आशय केवल सत्यके प्रकाशका है, परलोक दोनोंका मार्ग सीधा है।"
23
हैं और उपकार लेना पशुका काम है ।"
निर्वाहका और उसका लोक और - हितोपदेश |
उपकारका रूप स्वामित्व है, उसका करना नर-बालेका धर्म
-एक अज्ञात कवि |