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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
दर्शन-गुणको ढक देनेकी शक्ति पैदा होती है। कुछ कर्म-पुद्गलों में श्रात्माके आनन्द-गुणको छिपा देनेकी शक्ति पैदा होती है; कुछ कर्म-पुद्गलोंमें आत्माकी अनन्त सामर्थ्यको दबा देनेकी शक्ति पैदा होती है । इस तरह भिन्न-भिन्न कर्म-पुद्गलों में, भिन्न-भिन्न प्रकारकी प्रकृतियोंके अर्थात् शक्तियोंके बन्धको अर्थात् उत्पन्न होनेको 'प्रकृतिबन्ध' कहते हैं।
कुछ लड्डू एक सप्ताह तक रहते हैं, कुछ लड्डू एक मास तक, कुछ लड्डू एक महीने तक, इस तरह लड्डुओंकी जुदी-जुदी काल-मर्यादा होती है। काल-मर्यादाको स्थिति कहते हैं। स्थितिके पूर्ण होनेपर, लड्डू अपने स्वभावको छोड़ देते हैं अर्थात् बिगड़ जाते हैं । इसी प्रकार कर्म-दल आत्माके साथ सत्तर क्रोडाक्रोडी सागरोपम तक; कोई कर्म-दल बीस क्रोडाक्रोडी सागरोपम तक; कोई कर्म-दल अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं । इस तरह जुदे-जुदे कर्मदलोंमें जुदी-जुदी स्थितियोंका अर्थात् अपने स्वभावको त्याग न कर आत्माके साथ बने रहनेकी काल-मर्यादाओंका बन्ध अर्थात् उत्पन्न होना 'स्थितिबन्ध' कहलाता है। स्थितिके पूर्ण होनेपर कर्म-दल अपने स्वभावको छोड़ देते हैं अर्थात् आत्मासे जुदा हो जाते हैं।
कुछ लड्डुओंमें मधुर रस अधिक, कुछ लड्डुओंमें कम; कुछ लड्डुओंमें कटु रस अधिक, कुछ लड्डुओं में कम; इस . तरह मधुर-कटु आदि रसोंकी न्यूनाधिकता देखी जाती है। उसी