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मेरा निवेदन
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जब सन् १९३० में महात्मा गाँधी द्वारा सत्याग्रहसंग्राम छिड़ा था, उस समय मैंने अपनी तुच्छ सेवाएँ देशको अर्पित कर दी थीं। फलतः ता०.२० सितम्बर १६३० को मैं गिरफ्तार किया गया और मुझे ६ महीनेकी सख्त सजा
और पाँच सौ रुपया जुर्माना किया गया, जिसको मैने सहर्ष स्वीकार किया। उस समय मुझे कुछ धार्मिक ग्रन्थ और पुस्तकें पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ, पर गाँधी-इरविन पेक्ट ( Gandhi Irwin Pacit. ) के अनुसार जलसे छूट जानके कारण मैं कुछ नहीं लिख सका। इसलिये मैंने यह निश्चय किया कि भविष्य में यदि की और अवकाश मिला तो अपने विचारोंको पूर्णतया लिखनेकी चेष्टा करूँगा। मुशकिलसे एक वर्ष भी नहीं निकल पाया था कि युद्धके बादल फिर मँडराने लगे और महात्माज के इंगलैंडस आनेके छह दिन बाद ही यानी ता० ४ जनवरी सन् १६३२ को फिर युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस समय भी मैंने अपनी सेवाएँ देशको अर्पित की । फलस्वरूप ता० २२ फरवरीको मैं गिरफ्तार किया गया और धारा १७ ए० १७ बी० और चौथे आर्डीनसकी