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________________ खण्ड] * अहिंसाका स्वरूप करका हिंसाके साथ हिंसक प्रवृत्तिका समावेश अनिवार्य रूप से पाया जाता है । कोई भी मनस्तत्त्वका वेत्ता मनुष्यहृदयकी इस प्रकृति या विकृति या कर्मकी उपेक्षा नहीं कर सकता । ७५ आधुनिक संसार में दो विरुद्ध मार्ग एक साथ प्रचलित होरहे हैं। एक मार्ग तो अहिंसा, क्षमा, दया आदिका दूसरा हिंसा, युद्ध, बन्धु-विद्रोह आदिका । पहिले मार्गका आदर्श मनुष्य जातिको उच्च व शुद्ध अवस्था में ले जाता है, जब कि दूसरे मार्गका आदर्श मनुष्यको दुःखित और नीच अवस्था में ले जाता है 1 इसलिये यह हर मनुष्य ( गृहस्थ ) के लिये अत्यन्त आव श्यक है कि जहाँतक मुमकिन हो सके, वहाँतक वह हिंसाकृत कार्यों की कमी करता रहे। कारण कि अहिंसा इस भव और परभव, दोनों में अपार आनन्द देनेवाला तत्त्व है । यहाँ तक कि यह मनुष्यको मोक्ष प्राप्त करा सकती है। यही जैनधर्मकी अहिंसाका संक्षिप्त स्वरूप है ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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