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रोग हो गया और उस रोग से उन्हें बराबर दस्त होते रहे। पीछे उनके शिष्य सिंह मुनि ने महावीर स्वामी के कहने से रेवती के घर से बासा कुक्कुट मांस लाकर महावीर स्वामी को दिया। महावीर स्वामी ने उसे खा लिया, तब उनका पेचिस रोग भी दूर हो गया। यह सब वर्णन उस सम्प्रदाय के भगवती सूत्र में है।
जहां दिगम्बर धर्म में एक जघन्य श्रावक भी मांसभक्षण नहीं कर सकता है। जहां मांस-भक्षण है, वहां दि० धर्म के अनुसार जैनत्व ही नहीं है, वहां दूसरा सम्प्रदाय तेरहवें गुणस्थानवर्ती अहंतकेवली भगवान महावीर स्वामी के भी पेचिस का रोग और अभक्ष्य-भक्षण बताता है।
क्या प्रो० सा० श्वेताम्बर सम्प्रदाय के उक्त शासन की मौलिकता को भी दिगम्बर सम्प्रदाय के शासन में समावेश करने का दिगम्बर शास्त्राधार से कोई उपाय बताते हैं ? यदि नहीं, तो फिर दोनों सम्प्रदायों के शासनों का आकाश पाताल के सामान अन्तर रखने वाला मौलिक भेद, दोनों के एकीकरण में किस प्रकार सफलता दिला सकता है ? अर्थात जब दोनों सम्प्रदायों की मान्यताएं सईथा एक-दूसरे से विभिन्न हैं तब उन दोनों में सैद्धान्तिक दृष्टि से एकीकरण सर्वथा अशक्य है।
हां व्यावहारिक दृष्टि से दोनों सम्प्रदायों में एकदूसरे के प्रति सद्भावनाऐं, एवं परसर में निश्छल प्रेमभावका