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* श्री वर्द्धमानाय नमः *
प्रस्तावना
श्रीमद्दिगम्बराम्नातो जैनधर्मः सनातनः।
उद्भूतो जिनवीरस्य मुखतस्तन्नमाम्यहम् ।। श्रीमन्तः कुन्दकुन्दाद्या प्राचार्याः मुनिपुङ्गवाः ।
शान्तिसागरपर्यन्तास्तान वन्दे भावतोऽधुना ।। तपोनिष्ठं महाप्राज्ञं स्वैर्ग्रन्थैर्धर्मवद्धकम् ।
सुधर्मसागराचार्य वन्देऽहं साधुपाठकम ।। शासन-भेद और नई खोज का विचित्र ढंग
वर्तमान युग और इससे थोड़े समय पूर्व के युग में कई प्रकार से बहुत बड़ा परिवर्तन हो चुका है। आज से करीब ५०-६० वर्ष पहले समाज में इतनी शिक्षा का प्रचार नहीं था, जितना कि अब हो रहा है। आज अनेक विद्वान् उच्च कोटि का अध्ययन कर समाज में कार्य कर रहे हैं। पहले समय में इतने विद्वान् नहीं थे, परन्तु पहले के पुरुष कम ज्ञानी होते हुए भी आगम एवं अपने ध्येय पर दृढ़ रहते थे। आज के अनेक विद्वान् उक्त दोनों बातों में शिथिल पाये जाते हैं। इसके साथ आज-कल कर्मण्यता और नवीन २ योजनाओं का वेग के साथ प्रसार हो रहा है।