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[१३६ ] कर्म का उदय वहां क्या करता है ? आयुकर्म के साथ चारों गतियों का बंध क्यों होता है जबकि आयु की अविनाभाविनी गति का ही जीव के उदय होता है, जिसने नरकायु का बंध किया है उस जीव के देवगति, मनुष्य गति, तिर्यग्गसियों का भी बंध क्यों होता है ? जबकि वह जीव केवल नरकगतिमें ही जाने वाला है। सिद्धों के भव्यत्व गुण क्या करता है जबकि अब उनकी सिद्धि हो चुकी है ? केवलज्ञान के साथ केवल दर्शनगुण क्या कार्य करता है जबकि केवली भगवान साक्षात ज्ञान द्वारा विशेष ज्ञान करते हैं तब सामान्य दर्शन का वहां क्या काम बाकी रह जाता है और क्या उपयोग है ? प्रो० सा० इन तर्कों का क्या समाधान करते हैं ?
हम तो कहते हैं वस्तुस्थिति को कहां ले जाओगे जबकि सभी सातों कर्म हर समय जीव के बंधते रहते हैं तब आयु कर्म अकेला त्रिभाग में ही क्यों बंधता है ? अथवा आठ अपकर्षकाल का समय आयु के विभाग में ही क्यों पड़ता है ? इन बातों का वे उत्तर देंगे?
हम तो इन सभी बातों को वस्तुस्थिति तो बताते ही हैं साथ ही सभी बातें आगम सिद्ध हैं, केवली के प्रत्यक्ष ज्ञानगम्य हैं । कर्म नो कर्म वर्गणाओं और जीव के उन भावों के प्रत्यक्ष-दृष्टा चारज्ञानधारी गणधरदेव हैं तथा मनः श्यय, अवधि-ज्ञानधारी आचार्य प्रत्याचार्यों द्वारा वे भाव वर्णित हैं। और हेतुगम्य युक्तिपूर्ण हैं।