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________________ [ १०७ ] करता है और सर्वदेश मुनि करता है । इस पंक्ति में सर्वदेश, एकदेश की कोई बात नहीं है । दूसरे मुनि केशलोंच करता है, भूमि- शयन करता है, एक बार खड़े होकर अन्तराय टाल कर नवधाभक्ति पूर्वक आहार लेता है, चौमासे में जगह जगह विहार नहीं करता है इत्यादि बातें भी मुनि के संयम में गर्भित हैं या नहीं ? यदि हैं तो वे किस आधार से या किस प्रमाण से मानी जांयगी ? जब कि संयम का स्वरूप केवल पांच पापों का त्याग मात्र है, इसका समाधान प्रो० सा० क्या करेंगे ? फिर मुनि का अठ्ठाईस मूल गुण धारण करना परमावश्यक एवं अनिवार्य लक्षण है सो कैसे बनेगा ? अट्ठाईस मूल गुणों में अचेल ( नमत्व ) गुण प्रधान माना गया है उसके लिये एक नहीं सभी शास्त्र जो मुनि स्वरूप-निरूपक हैं । इन सब बातों पर ध्यान नहीं देकर केवल धवला की एक पंक्ति पकड़कर अपने मन्तव्य की सिद्धि की जाती है और धवलसिद्धान्त ग्रन्थ का प्रमाण बताया जाता है यह बहुत बड़ा श्राश्वर्य है 1 प्रो० सा० को जानना चाहिये कि धवला के जिस १७६ पृष्ठ पर संयम का उल्लेख है उसी के आगे १७७ वें पृष्ठ में यह पंक्ति है -- " द्रव्य-संयमस्य नात्रोपादानमिति कुनोऽवगम्यते इति चेत्सम्यग्ज्ञात्वा श्रद्धाय यतः संयम इति व्युत्पत्तित्तदवगतेः ।" ( धवल सिद्धांत पृष्ठ १७७ )
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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