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________________ [ १०५ ] की अपेक्षा से सामान्य रूप से तीनों म भाववेद का है, द्रव्यवेद से तीनों वेद मोक्ष के हैं। द्रव्यवेद तो मुक्ति के लिये केवल पुरवेद है । लिंग दो प्रकार है- निर्मन्थजिंग और समन्थलिंग । वर्तमान नय की दृष्टि से तो निर्मन्थलिग से ही मोक्ष होती है भूतपूर्व नय की दृष्टि से भजनीय है। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि यदि सवत्र अवस्था से भी मोक्ष प्राप्ति होती तो वर्तमान नय की अपेक्षा ( साक्षात् ) से भी संग्रन्थलिंग से भी मोक्ष का विधान किया जाता परन्तु सर्वत्र साक्षात् मोक्ष प्राप्ति तो निर्मन्थलिग से ही बताई गई है। और भूतपूर्व नयको अपेक्षा से तो चारों गतियों से मोक्ष प्राप्ति बताई गई है । यथा "तत्रानन्तर- गतौ मनुष्यगतौ सिध्यति, एकान्तरगतौ चतसृषु गतिषु जातः सिध्यति ।" ( रा० वा० ३६६ ) अर्थात- अनन्तर गति की अपेक्षा से तो मनुष्य गति से मोक्ष होती है और एकान्तर गति की अपेक्षा से चारों गायों में उत्पन्न जीव मोक्ष जा सकता है। जैसे सवख मोक्ष प्रातिप्रो० सा० बताते हैं बस उन्हें तिर्यश्र्च, नरक और देवगति से भी साक्षात् मोक्ष प्राप्ति बतानी पड़ेगी। परन्तु यह सब कथन भूतपूर्व नय की अपेक्षा से हैं उसे नहीं समझकर ही प्रो० सा० ने सप्रन्थ लिंग से मोक्ष प्राति बता दी है । परन्तु
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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