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________________ [ १०३ ] यहां भूतपूर्व का अभिप्राय सिद्ध होने से अनन्तरपूर्व का है ।" प्रो० सा० ऊपर की पंक्ति लिखकर संग्रन्थलिंग ( वख सहित होने से भी मुक्ति का होना बताते हैं और सर्वार्थसिद्धि के १० वें अध्याय की पंक्ति को प्रमाण में प्रगट करते हैं। परन्तु उनका सत्रस्त्रलिंग से मोक्ष की सिद्धि मानना भी सर्वथा मिथ्या है। मालूम होता है कि तत्त्रार्थसूत्र एवं सर्वार्थसिद्धि की पंक्तियों पर आपने यथेष्ठ ध्यान नहीं दिया है । अस्तु जिन पंक्तियों से वे वस्त्र सहित अवस्था में मोक्ष बताते हैं उनका खुलासा अर्थ हम नीचे लिखते हैं --- १० वें अध्याय के ६ वें सूत्र में आचार्य उमः स्वामी ने यह बतलाया है कि सिद्ध पद अथवा मोक्ष प्राप्ति में साक्षात् तो कोई भेद नहीं है, सभी सिद्ध अनन्त गुणधारी, अमूर्त एवं पूर्ण विशुद्ध हैं, सभी सनात हैं, सबके अष्ट कर्म और शरीर नष्ट हो चुका है । इस लिये क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, यथाख्यात चारित्र, क्षायिकदर्शन, अगुरुलघु, अव्याबाध, सूक्ष्म गाहन आदि अनन्त विशुद्ध गुण सबों में बराबर हैं, उन में कोई भेद वर्तमान नय की अपेक्षा से नहीं है । परन्तु भूतपूर्व नयकी अपेक्षा से उनमें परस्पर भेद है जैसे कोई सिद्ध जम्बू द्वीप से मोक्ष गये हैं, कोई धातकी खण्ड से गये हैं । ज्ञान की अपेक्षा कोई दो ज्ञानों से मोक्ष गये हैं, कोई तीन वा चार ज्ञानों से मोक्ष गये हैं, अर्थात् किसी को
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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