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________________ [घ] तो कोई प्रकार ही नहीं पाया जाता, जिससे द्रव्यनपुंसक के तीन अलग भेद बन सकें। पुरुष और स्त्री वेदमें भी द्रव्य और भाव ले वैपम्य मानने में ऊपर बतलाई हुई कठिनाई के अतिरिक्त और भी अनेक प्रश्न खड़े होते हैं। यदि वैषम्य हो सकता है तो वेद के द्रव्य और भाव भेद का तात्पर्य ही क्या रहा ? किसी भी उपांग विशेप को पुरुप या स्त्री कहा ही क्यों जाय ? अपने विशेष उपांगके बिना अमुक वेद उदय में आवेगा ही किस प्रकार ? यदि आ सकता है तो इसी प्रकार पांचों इन्द्रियज्ञान भी पांचों द्रव्येन्द्रियों के परस्पर संयोगम पच्चीस प्रकार क्यों नहीं हो जाने ? इत्यादि। इस प्रकार विचार करने में जान पड़ता है कि या तो स्त्रीवेद से ही क्षपक श्रेणा चढ़ना नहीं मानना चाहिये, और यदि माना जाय तो स्त्रीमुक्ति के प्रसंग से बचा नहीं जा सकता। उपलब्ध शास्त्रीय गुणस्थान विवेचन और कसिद्धान्त में स्त्रीमुक्ति के निषेध की मान्यता नहीं बनती। --संयमी और वस्त्रत्याग श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यतानुसार मनुष्य वस्त्र त्याग करके भी मत्र गुणस्थान प्राप्त कर सकता है और वस्त्र का सर्वथा त्याग न करके भी मोक्षका अधिकारी हो सकता है। पर प्रचलित दिगम्बर मान्यतानुसार वस्त्र के सम्पूर्ण त्यागसे ही संयमी और मोक्षका अधिकारी हो सकता है। अतएव इस विषय का शास्त्रीय चिन्तन आवश्यक है। १-दिगम्बर सम्प्रदाय के अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ भग
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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