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________________ ४२ १९४ १९६ १९४ १९९ माया विषय ६९ अतीतादि भेदथी कालना पण त्रण भेदो थई शके छे तो वे . अहीं केम बताव्या नहिं ? ए शब्दानुं समाधान ६९ समयथी लईने शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त कालनु स्वरूप १९४ ६९ धर्मास्तिकायादि पांच अजीवमा कया कया भावो होय ? तेनुं स्वरूप १९६ ६९ कर्मस्कन्धाश्रित औपशमिकादि भावो अजीवोने पण संभवे छे. तो ते कहेवा जोइए ? ए बाबतनो निर्णय ७. प्रत्येक गुणस्थानमां औपशमिकादि पांच भावोमांथी कया कया ___भावो होय ? तेनुं स्वरूप ७० क्षायोपशमिक, औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक अने सान्निपातिक भावना उत्तरभेदो जेटला जे गुणस्थानमा होय? तेनु स्वरूप ७० उपरोक्त अर्थने प्रतिपादन करनारी सङ्ग्रह गाथाओ १९८ पञ्चम सङ्ख्याधिकार. ७१ सयातना त्रण, असख्यातना नव अने अनन्तना नव मळी संख्याना एकवीस भेदोनु कथन ७२ जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टसङ्ख्यात तथा पल्य(पाला ) अने परिधिनुं स्वरूप २०० ७३ चार पल्योनां (पालानां) नाम तेनी उंडाइ, वेदिका वगेरेनुं स्वरूप २०१ ७४-७७ पल्योने ( पालाओने ) भरवा अने खाली करवाथी केवी रीते उत्कृष्टसयातुं थाय ? तेनुं सविस्तर स्वरूप २०२-२०६ ७८-७९ नवप्रकारना असङ्ख्यातनुं अने नवप्रकारना अनन्तनुं स्वरूप २०७ ७९ जघन्यसङ्ख्यातादि संख्याना एकवीस भेदोनी स्थापना २०८ ८० अनुयोगद्वारसूत्रना अभिप्राय प्रमाणे उपरोक्त भेदोनुं कथन अने ते सूत्रनो पाठ २०९ ८०-८६ मतान्तरथी असङ्ख्यात अने अनन्तनुं सविस्तर स्वरूप २११-२१३ प्रस्तुत प्रकरणनी समाप्ति प्रन्थकारनी प्रशस्ति २१४ प्रथम परिशिष्ट द्वितीय परिशिष्ट तृतीय परिशिष्ट चतुर्थ परिशिष्ट पंचम परिशिष्ट षष्ठ परिशिष्ट cmo...
SR No.010087
Book TitleChatvara Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1934
Total Pages289
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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