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प्रसंग और निर्वाण २८. सच्ची और मूठी पूजा:
बुद्धदेव के तीर्थस्थानों की यात्रा कर हम उनकी पूजा नहीं कर सकते। सत्य की शोध और बाचरण के लिए उसका बाग्रह, उसके लिए भारी से भारी पुरुषार्थ और उनकी अहिंसा वृत्ति, मैत्री, कारुण्य आदि सद्भावनाओं को सबको अपने हृदय में विकसित करना चाहिए। यही उनके प्रति हमारा सच्चा बादर हो सकता है और उनके बोध-वचनों का मनन ही उनकी पूजा और यात्रा कही जा सकती है।
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