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अनुवादक की ओर से
जी, अनुवादक का काम बहुत कठिन है। पर प्रेरणा, उत्साह और सहयोग मिलने पर कठिन और जटिल काम भी सहल बन भाते हैं। यह मेरा, मानता हूँ कि, पहला प्रयास है, इसे साहस ही कह सकता हूँ। कितना सफल हुआ, यह बताना मेरा काम नहीं । मैंने अपनी प्रिय भाषा हिन्दी का भी कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया। गुजराती आदि माषाओं का तो करता ही कहाँ से। फिर भी पूज्य रिषभदासजी रांका ने यह पुस्तक हाथ में थमा ही दी। पढ़ा, तो आनन्द आने लगा । यह स्वाभाविक मी था। श्रद्धेय मशरूवालाजी की संयत, विवेकपूर्ण विचार-मरणी से विचारक-वर्ग सुपरिचित है। बुद्ध और महावीर पर लिखी गई इस पुस्तक ने मुझे विशेष रूप से आकर्षित कर लिया। जो हो, श्री. संकाजी की प्रेरणा से ही अब यह पुस्तक हिन्दी में पाठकों के हाथों में पहुँच रही है।