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________________ १३६ भाषण में या शहर में रहनेका फर्ज नहीं है। लेकिन यदि उसने ऐसे सम्बन्ध किए हों, तो उन सम्बन्धों को विवेक और प्रेम से निवाहने का फर्ज अवश्य है । विवाह किया यानी बन्धन हो गया । भापका फर्ज हो जाता है कि बाप अपनी स्त्री को अपने सुख-दुख की उन्नति और अधोगति की हिस्सेदार बनाकर अपना और उसका दोनों के उद्धार का मार्ग साथ रहकर पार करें। उस स्त्री के पर जाने के बाद, आप जैसे एक पशुके मरजाने के बाद दूसरा पशु लाते हैं, वैसे दूसरी स्त्री नहीं ला सकते। यह राम के मार्ग से, महाबोर के मार्ग से सब साधुपुरुषों के मार्गों से उल्टा है। यह पशुता है, मनुष्यता नहीं है। उस स्त्री को आप दुत्कार नहीं सकते, मार नहीं सकते, उसका त्याग नहीं कर सकते। १८. सन्तान के प्रति कर्तव्य : विषयोपभोग करना आपका फर्ज नहीं है । लेकिन आप घर बसावें और बच्चे हुए कि उनका बन्धन आपको स्वीकार करना ही होगा। जैसे बकरे और मुर्गे-मुर्गी पालनेवाला उनके बच्चों के आधार पर ही उनकी कीमत करता है। वैसे ही आपके बच्चे कितने पैसे फमाकर लावेंगे इस भावना से बाप उनकी ओर नहीं देख सकते। आपका फर्ज यह नहीं है कि आप उनके लिए खूब पैसा खर्च करके मनका पोषण करें या उनके लिए पैसा छोड़कर मरें, लेकिन फर्ज तो यह है कि आप उनका पोषण करें, उनकी शुभ कामनाओं को पदावा दें। जिस संसार में पाप लुब्ध हुए हैं उसमें लुब्ध होने की
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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