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भाषण
८. वास्तविक अनुयायी :
मेरे विचार के अनुसार जगत् की दृष्टि में कोई भी पंथ पंडित और सामान्य वर्ग की संख्या के आधार पर ही बहुत कुछ जोरदार माना जाता है। लेकिन पंथ में जन्म लेकर उसका सदुपयोग करके अपनी उन्नति करनेवाले, देखा जाय नो, दिलसे उपासना करनेवाले उपासक, भक्त या जिज्ञासु ही होते हैं। पंथ का उत्कर्ष या पंथ के बाहर के सामान्य मनुष्य-समाज का उत्कर्ष इन तीनों, वर्गों के अनुयायियोंसे ही होता है। यह भी होता है कि आगे जाकर यह उपासक, भक्त या जिज्ञासु अपने भाई-बन्धुओं से इतना अधिक दूर पड़ जाता है कि वे लोग उसे अपने पथ का माननेको भी तैयार नहीं होते। फिर भी पंथ का पूरा पूरा लाभ उठानेवाले तो इन तीनों वर्गों में ही होते हैं । पारसनाथ के पंथ में जन्म लेकर अपने को और सारे जैनधर्म को ऊँचा उठानेवाले महावीर स्वामी इसी बात के एक उदाहरण हैं। राजचन्द्र का उदाहरण भी कुछ-कुछ ऐसा ही कहा जायगा। २. सत्-समागम मण्डल :
इन तीन वर्षों के अनुयायियों के लिए जयंतियाँ बराबर मनाना विशेष लाभदायक हो सकता है। ऐसी जयतियों मनाने का ढंग तो यही है कि सत्-समागम के मण्डल बनाकर अपने जैसे ही उपासक, भक्त और जिज्ञासुओं के साथ एक-दूसरे की उन्नति के मार्गों पर विचार किया जाय। इनमें उपासक बैठकर महावीर के चरित्र और गुणोंका विचार करें और उनका अनुकरण करने का