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अहिंसा के नये पहाड़े सिफत नहीं आएगी। लेकिन उस रुपये के बीज खरीद कर उसे बोयें या कपास लाकर उसपर मेहनत करके उसे कातें या बुनें या कच्चा माल खरीद कर उसमें से कोई उपयोगी पदार्थ बनावें, तो उस मेहनत की कीमत दो आने या चार आने आ सकती है। यह रुपया हमारा अपना माना जाता है, इसलिए हम उसपर ब्याज मांगते हैं। इसका यह मतलब हुआ कि व्याज देनेवाला अपनी दो आनेकी मेहनत में से थोड़ा-सा हिस्सा हमें दे देता है। हम खुद किसी प्रकार का उद्यम करने के लिए अपने रुपये का अिस्तेमाल नहीं करते या करने की इच्छा नही रखतं । कोई मेहनत-मजदूरी करनेवाला किसान, बुनकर, कारीगर आदि न हो, तो हमारा रुपया हमारी तिजोरी में पड़ा रहेगा। राजा या चोर अगर उसे लूट न ले या हमें उसका दान करने की सद्बुद्धि न हो, अथवा हमारे घर में कोई उड़ाऊ लड़का पैदा न हो तो हमारे पुत्र की विधवा और सारे कुल के नाश के बाद रही हुी कोई विधवा शायद उसे भैजाकर दुःख की घड़ी में उपयोग कर सकेगी। लेकिन बिना भैजाये यह रुपया यदि सौ वर्ष तक तिजोरी में भी पड़ा रहे तो भी उसके सवासोलह आने भी नहीं होंगे; बल्कि राज्य में परिवर्तन होने से उसकी कीमत घट जाने का सम्भव अलबत्ता रहेगा।
१४. रुपये का उपयोग :
सच पूछिये तो हम अपना रुपया उपजाऊ काम में न उगा सके और इस कारण वह पड़ा रहे और लुट जाने या चुराये जाने