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प्रकाशक का मामार मानना दूसरे शब्दों में अपने मुंह से अपनी ही प्रशंसा करने-जैसा है। हां, उनका इतर अवश्य हूँ जिनसे मिस पुस्तक के.पढ़ने, अनुवाद करने, छपाने आदि के बहाने अपने विकास के मार्ग में मुने प्रेरणा और सहायता मिली है।
'जैन बगत कार्यालय, वर्षा । भाग पंचमी, वीर सं० २४४६
२२:५५.
-जमनालाल जैन