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जिन्होंने साधु के कठोर व्रतों का पालन करते हुए भी लोकसेवा के बहुत काम किये और अहिंसा के मूल तत्त्वों को मानव जीवन में प्रतिष्ठित करने के लिये सतत प्रयास किया, उन अज्ञान-तिमिर-तरणि कलिकाल कल्पतरु श्री श्री १००८ स्व० जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर की पवित्र स्मृति में