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वनस्पत्यंगों तथा पक्वान्नों आदि में समान रूप से होने लगा। उस समय प्राण्यंग मांस हल्के मनुष्यों तथा क्षत्रियों आदि शिकारी जातियों का खाद्य अवश्य बन गया था। वेदविहित यज्ञों में पशु-बली की प्रथा के कारण प्राण्यंग मांस जो यज्ञो में बली से बनता था वह भी धर्मश्रद्धा से खाद्य बनता जा रहा था। तथापि जैन श्रमण एव जैन श्रमणोपासक गहरू (श्रावक) इसका आहार कदापि न करते थे। किन्तु जैन तीर्थकर भगवान नेमिनाथ ने राजा उग्रसेन के वहाँ भोजनार्थ बांधे गये पशुओं को अभय दान दिलाया तथा भगवान् महावीर स्वामी ने पशुओं के यज्ञों का घोर विरोध किया । यह सब कुछ होने पर भी गौतम बुद्ध ने भगवान महावीर स्वामी के समान ही हिंसक यज्ञों का विरोध किया । किन्तु तथागत गौतम बुद्ध एवं उनके भिक्षुओ में प्राण्यंग मत्स्य, मांस आदि का भक्षण होने लग गया था। ईसा की प्रथम
२. नैवेद्य मिष्टान्न, पक्वान्न संबोध प्रकरण ३. आमिष पूजा-नैवेद्य पूजा धर्मरत्न करंडक
(वर्धमान सूरिकृत) ४. जम्बीर फल, बिजोरा, जला हुआ अन्न, मसुर धान्य, गाय, भैस, बकरी के दूध धर्म सिन्धु के सिवाय अन्य दूध । बासी अन्न, नमक, अपने लिये
पकाया हुआ भोजन इत्यादि । ४. कंटय। कंटक
१. काटा कंटग २. शल्य
विपाक १८