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________________ अपनी बात विश्व के अहिंसा में निष्ठा रखनेवाले जन-समाज में साधारण रूप से तथा जैन समाज में विशेष रूप से खलबली मचा देनेवाली "भगवान बुद्ध" नामक पुस्तक भारत सरकार की "साहित्य अकादमी" द्वारा सन १९५६ ईसवी में हिन्दी भाषा में प्रकाशित हुई। यह पुस्तक बौद्ध-दर्शन के विद्वान् अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी लिखित मराठी भाषा मे "बुद्ध-चरित्र" का अनुवाद है। यद्यपि मराठी "बुद्ध-चरित्र" पुस्तक कुछ वर्षों पहले छप चुकी थी परन्तु उसका प्रचार महाराष्ट्र मे कतिपय व्यक्तियों तक सीमित होने से जैन समाज को इस पुस्तक सम्बन्धी विषय का पता न लगा। जब भारत सरकार ने इसका अनुवाद हिन्दी, गुजराती, मराठी, आसामी, कन्नड़ी, मलयालम, उडिया, सिघी, तेमिल, तेलुगु और उर्दू इन ग्यारह भारतीय प्रमुख भाषाओ मे अपनी साहित्य अकादमी द्वारा प्राय: एक साथ प्रकाशित करवाकर सर्वव्यापी प्रचार प्रारंभ किया, तब जैन समाज को ज्ञात हुआ कि इस पुस्तक मे "करुणा के प्रत्यक्ष अवतार, दीर्घ तपस्वी, महाश्रमण निग्गठ नायपुत्त भगवान् वर्द्धमान-महावीर स्वामी तथा निग्रंथ (जैन) श्रमणो पर लेखक महोदय ने मास भक्षण का आरोप लगाया है, जो सर्वथा अनुचित है। अहिसा में निष्ठा रखनेवाले मानव समाज ने तथा विशेष रूप से जैन समस्त समाज ने सर्वत्र इस पुस्तक का विरोध किया। इसे जन्त करने के लिये स्थान-स्थान पर सभाएं हुई, प्रस्ताव पास किये गये तथा भारत सरकार को इस विषय में तार व अर्जियां भेजी गयी। अनेक शिष्ट मंडल भी योग्य अधिकारियों से मिले। अनेक स्थानों मे सनातन धर्मियों
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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