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________________ श्रामुख प्रस्तुत पुस्तक में जैन श्रमण और श्रावक वर्ग के आचार का-विशेष तथा अहिसक आचार का सुदर वर्णन किया गया है, और उस आचार के साथ मांस, मदिरा आदि के सेवन का कोई मेल नहीं है, वे सर्वथा वर्ण्य हैंऐसा प्रतिपादन किया गया है । इस अहिमक आचार के प्रतिष्ठापक भगवान् महावीर की जीवनचर्या का सक्षेप मे निरूपण भी कर दिया है, वह इसलिए कि उन्होने स्वयं अहिमा की प्रतिष्ठा अपने जीवन में किस प्रकार की थी ? यह जानकर स्वय माधु और गृहस्थ भी अपने अहिमक आचार में अग्रसर हो और अहिसा के पालन मे कष्टसहन की प्रेरणा भी भगवान् के जीवन से ले सके। एक पूग प्रकरण भगवान् महावीर ने आगमो में मास और अडे खाने का किस प्रकार निषेध किया है और खानेवाले की कैसी दुर्गति होती है--इसके वर्णन में है । इममे आगमों से अनेक पाठो के हिंदी अनुवाद देकर यह सिद्ध किया है कि स्वय भगवान महावीर ने मास आदि के सेवन का किस प्रकार निषेध किया है। अब मुख्य प्रश्न सामने है कि यदि वस्तुस्थिति यह है तो आगमों में कुछ अपवाद के रूप में मांसाशन सम्बन्धी पाठ आते है। उनकी भगवान् महावीर के उक्त अहिसा के उपदेश से किस प्रकार सगति है ? आज से एक हजार वर्ष से भी पहले यही प्रश्न टीकाकारो के समक्ष था और आज के आधुनिक युग में भी कई लेखको ने इस ओर जैन विद्वानो का ध्यान दिलाया है । यह प्रश्न बडी परेशानी तब करता है जबकि आज हम यह देखते है कि-जैन समाज मे मासाशन सर्वथा त्याज्य है और डर यह लगता है कि कही अनास्थावाले लोग उन पाठों को आगे करके मांसाशन का सिलसिला पुनः जारी न कर दें। यह समस्या जैसे आज है वैसे पूर्वकाल में भी थी।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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