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के विरोधी पशु-पक्षी भी आपस में प्रेम के साथ एक ही स्थान पर मिल-जुल कर धर्म उपदेश सुनते हैं। पिछले जमाने की बात जाने दीजिये, आज के पंचम काल की बीसवीं सदी में जैनाचार्य श्री शान्तिसागर जी (जो आज कल भी जीवित हैं) के शरीर पर पाँच बार सर्प चड़ा और अनेक बार तो दो दो घण्टे तक उनके शरीर पर अनेक प्रकार की लीला करता रहा । परन्तु वे ध्यान में लीन रहे और सर्प अपनी भक्ति और प्रेम की श्रद्धांजलि भेंट करके बिना किसी प्रकार की बाधा पहुँचाये चला गया। ___ जयपुर के दीवान श्री अमरचन्द ब्रती श्रावक थे । उन्होंने मांस खाने और खिलाने का त्याग कर रखा था | चिड़ियाघर के शेर को मांस खिलाने के लिए खर्च की मंजूरी के कागजात उनके सामने आये तो उन्होंने मांस खिलाने की आज्ञा देने से इन्कार कर दिया। चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने कहा कि शेर का भोजन तो मांस ही है, यदि नहीं दिया जायेगा तो वह भूखा मर जायेगा। दीवान साहब ने कहा कि भूख मिटाने के लिए उसे मिठाई खिलाओ । उन्होंने कहा कि शेर मिठाई नहीं खाता। दीवान अमर चन्द जैन ने कहा कि हम खिलावेंगे। वह मिठाई का थाल लेकर कई दिन के भूखे शेर के पिंजरे में भयरहित घुस गये और शेर से कहा कि यदि भूख शान्त करनी है तो यह मिठाई भी तेरे लिये उपयोगी है, और यदि मांस ही खाना है तो मैं खड़ा हूँ मेरा माँस खालो। शेर भी तो आखिर जीव ही था। दीवान साहब की निर्भयता और अहिंसामयी प्रेमवारणी का उस पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने सबको चकित करते हुए शान्त भाव से मिठाई खाली।
श्री विवेकानन्द के मासिक पत्र "प्रबुद्ध भारत” का कथन है १. आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज का चरित्र, पृ० २३-२४ । ३५६ ]